भारत-इजरायल संबंधों के सुदृढ़ीकरण की इतनी आवश्यकता क्यों पड़ गई है--इस विषय पर बड़े स्तर पर विचार-मंथन किया जा रहा है। भारत के परिप्रेक्ष्य में यह विचार-मंथन इसलिए ज़रूरी है क्योंकि एशियाई ज़ोन में शक्ति-संतुलन और आर्थिक अस्थिरता दो ऐसे मुद्दे हैं, जिनसे भारत सीधे-सीधे प्रभावित है। चीन-समर्थित पाकिस्तान को सामरिक मदद एक बड़ा संकट भारत के सामने आ-खड़ा हुआ है।  इसके अलावा, इजरायल और भारत दोनों ही इस्लामिक कट्टरता के शिकार रहे हैं जबकि इजरायल उसका मुंह-तोड़ जवाब देता रहा है और भारत उससे बचने की कोशिश करता रहा है। यह भी काबिले-गौर मसला है कि इजरायल को भारत से आर्थिक मदद की दरकार है क्योंकि भारत विश्व का बड़ा खाद्यान्न-उत्पादक है और इजरायल का हितैषी भी।  इसके विपरीत, इजरायल एक बड़ा हथियार-निर्माता है और वह सामरिक क्षेत्र में भारत को हर प्रकार का सामरिक साज-सम्मान मुहैया कर सकता है। 

वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में दोनों देशों के लिए दोस्ताना संबंध बनाना एक ज़रूरत है। इजरायल भारत का साल १९५० से ही कृतज्ञ रहा है जबकि भारत उसे १७ सितंबर, १९५० को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता प्रदान करने में सबसे आगे रहा है। यह संबंध और प्रगाढ़ हो गया जबकि २९ जनवरी, १९९२ को इजरायल के साथ हमारे राजनयिक संबंध स्थापित हुए। इस प्रकार दोनों देशों के मध्य संबंधों का कोई सात दशकीय इतिहास है जिसे दोनों देश तसल्ली से अहमियत देते हैं। 

 

दिनांक २९ जनवरी २०२२ को प्रधान मंत्री मोदी ने उन्हीं ऐतिहासिक संबंधों का दृष्टान्त देते हुए इंगित किया कि आज के अति संक्रमणशील दौर में दोनों राष्ट्रों को कदम-से-कदम मिलाते हुए आगे बढ़ना होगा, जो न दोनों देशों के लिए उपयोगी होगा बल्कि समूचे एशिया के लिए भी महत्वपूर्ण होगा। कुछ ही महीने पहले इजरायल इस्लामिक जिहाद के नाम पर खूनी संघर्ष में संलिप्त रहा है और उसने उसका डटकर मुकाबला भी किया। इधर भारत में भी अफगानिस्तान में तख़्तापलट के कारण मुश्किलें बढ़ने की आशंका रही हैं जिसे कूटनीतिक कोशिशों के जरिए निबटाया गया है। बहरहाल, एक बात तो तय है कि इजरायल इस्लामिक आतंकवाद पर हावी होता रहा है जबकि भारत में इस्लाम का भविष्य अति उज्ज्वल है। 

बहरहाल, इस वर्ष इजरायल-भारत राजनयिक संबंधों का ३० वां वर्षगांठ मनाया जा रहा है जिसे देश के सभी हलकों में एक कूटनीतिक उपक्रम के तौर पर देखा जा रहा है। जब दोनों देशों के विदेश मंत्री एक साथ मिलकर आपसी सहयोग की इबारत लिख रहे हैं तो इन कूटनीतिक संबंधों का निहितार्थ भी अच्छी तरह समझ में आ रहा है। चुनांचे, ये संबंध और भी प्रगाढ़ होते जाएंगे क्योंकि दोनों के अपने-अपने स्वार्थ हैं और अपने-अपने हित हैं। 

न्यूज़ सोर्स : wewitnessnews