हमारे लोकतंत्र में अमर्यादित टिप्पणियां करना और फिर अपनी कही हुई बात से मुकर जाना इस देश के बड़े नेताओं की आम बात है। पिछले 75 वर्षों के भारतीय प्रजातंत्र में नेताओं की इस बचकानी हरकत से सारी जनता इत्तेफाक रखती है। लेकिन यह भी सच है कि भूलने की उसकी यह आदत लाइलाज है जिसका  फायदा हमारे नेतागण हमेशा उठाते आए हैं। कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं से लेकर आई-गई कांग्रेस-इतर नेताओं ने भी असंख्य बार अपनी कही हुई बातों को नकार दिया है और यदि कभी उसे स्वीकार भी किया है तो यह कहने से नहीं चूकते कि उनके कहने का निहितार्थ कुछ और था और यह कि उनका उद्देश्य किसी के चरित्र या व्यक्तित्व पर कीचड़ उछालना बिल्कुल नहीं था। इसी परिप्रेक्ष्य में यहां यह उल्लेख करना समीचीन लगता है कि नरेंद्र मोदी ने कई बार यह कहा है कि वह किसी नेता का नाम लेकर या उसकी शख्सियत पर टिप्पणियां नहीं करते हैं जबकि वास्तविकता बिल्कुल इसके विपरीत है। हाल ही में, उन्होंने नेहरू जी के संबंध में  संसद में खुलकर चर्चा की है। जब मीडिया ने उनसे इस बारे में सवाल किया तो उन्होंने सफाई देते हुए जो कुछ कहा, उससे उनका बच पाना मुश्किल लगा रहा है। पहले उन्होंने कभी संसद में कहा था कि मैंने किसी नेता के पिता, दादा, नाना या माता के बाबत कभी कुछ नहीं कहा है हाँ, नेहरू जी का उल्लेख किया है और सिर्फ उनकी कही हुई किसी कथन को उद्धृत किया है जिससे उनकी शख्सियत को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। उन्होंने कहा कि जनता को यह जानने का हक है कि अमुक वरिष्ठ नेता ने भूतकाल में क्या कहा है। बहरहाल, जब उन्होंने कहा कि ‘परिवारवादी पार्टियां लोकतंत्र का सबसे बड़ा दुश्मन हैतो यह साफ़ हो जाता है कि उनका इशारा नेहरू, इंदिरा, राजीव और राहुल की तरफ ही था। उनका यह संकेत उत्तर प्रदेश के मुलायम सिंह और अखिलेश यादव की ओर भी हो सकता है

बड़े नेताओं के सिवाय छोटे नेता भी अपनी बात से मुकरने की आदत से बुरी तरह ग्रस्त हैं। नेताओं की इस आदत से हमारे लोकतंत्र की छबि धूमिल होती है। दरअसल, यह आदत नेताओं के अपरिपक्व व्यक्तित्व को बिंबित करती है। ऐसा लगता है कि हमारे देश की सत्ता की बागडोर बहुसंख्य अनाड़ी लोगों के हाथों में है और यह बात सोलह आने नहीं तो आठ आने तो सही है ही।

 

न्यूज़ सोर्स : wewiness