लन्दन, दिनांक ३०-०७-२०२३: 'वातायन-यूके' के तत्वावधान में दिनांक २९-०७-२०२३ को इस वैश्विक मंच की १५३वीं संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी के अंतर्गत  हिंदी साहित्य में दख़ल रखने वाले, मनश्चिकित्सक डॉ. विनय कुमार के व्यक्तित्व और कृतित्व के संबंध में कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ ने उनसे अंतरंग बातचीत की तथा उनके भीतर स्पन्दनशील शख़्सियत को हम सब के सामने रखा। मनीषा जी ने डॉ. विनय के उनके अपने प्रोफेशन मनश्चिकित्सा और साहित्य-सृजन को आमने-सामने रखते हुए गूढ़ से गूढ़ सवाल किए जिनके उत्तर में डॉ. विनय ने बड़े सधे हुए और मनोविनोदपूर्ण अंदाज़ में अपनी बात रखी। कार्यक्रम अबाध रूप से ८.३० बजे से आरंभ होकर कोई डेढ़ घंटे तक चलता रहा और श्रोता-दर्शक ध्यानमग्न होकर सुनते रहे। 

इस संगोष्ठी 'वैश्विक हिंदी परिवार' का भी सहयोग मिला तथा सिंगापुर हिंदी संगम की संयोजक सुश्री संध्या सिंह भी  इस आभासी मंच पर उपस्थित रहीं। 

उल्लेखनीय है कि इस संगोष्ठी की अध्यक्षता हिंदी साहित्य की चर्चित कवयित्री तथा साहित्य अकादमी सम्मान से अलंकृत डॉ. अनामिका ने की। कार्यक्रम का आरंभ करते हुए आईटी प्रोफेशनल और लन्दन की सुपरिचित कवयित्री सुश्री आस्था देव ने प्रतिभागी साहित्यकारों नामत: डॉ. विनय कुमार, प्रोफ़ेसर अनामिका और कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ का संक्षिप्त और समीचीन परिचय दिया। तदुपरांत, मनीषा कुलश्रेष्ठ ने बड़े सहज और आत्मीय माहौल में डॉ. विनय से उनके मनश्चिकित्सीय और साहित्यिक विषयों पर अंतरंग बातचीत की शुरुआत की एवं उनके अवचेतन में सोई हुई स्मृतियों को झंकझोर कर उन्हें हमसे रू-ब-रू कराया।

डॉ. विनोद ने बताया कि उनके स्कूल के दिनों से ही शब्द उन्हें खींचते रहे, सींचते रहे। उन्हें दिनकर की तलवार की तरह चलने वाली भाषा ने बहुत अधिक प्रभावित किया है। दिनकर जी की कविताएं पढ़ते हुए उन्हें अनुभव हुआ कि इस राष्ट्रकवि को रवीन्द्रनाथ टैगोर और इकबाल बहुत प्रिय थे। दिनकर जी ने अपने काव्य में इकबाल से भाषा का तेवर लिया और टैगोर से भाषा की सांद्रता ली। 

मनीषा जी ने डॉ. विनय से पोएट्री और मनश्चिकित्सीय उपचार के समन्वय पर प्रश्न किए और यह जानना चाहा कि क्या उन्होंने दोनों के माध्यम से अपने रोगियों का उपचार किया है तो विनय जी ने इसका बड़े मनोविनोदपूर्ण रूप से उत्तर दिया। इसी बीच, डॉ. अनामिका ने बताया कि मनुष्य के समक्ष हर चुनौती एक अवसर की भांति आती है; तब, उसकी अपनी रेशियल और जेनेटिक मेमोरी पर जो चोट लगती है, उसके 'स्व' की चेतना ख़त्म हो जाती है और उसके अहंकार का घड़ा फूट जाता है। इस प्रकार, उन्होंने डॉ. विनय के परिप्रेक्ष्य में उनकी रचनाधर्मिता को बड़े तार्किक ढंग से अपने भावुकतापूर्ण लहज़े में व्यवहृत किया। इस संवाद शृंखला में डॉ. विनय ने अपने जीवन के समग्र काल में प्राप्त अनुभवों को अपने व्यावसायिक कर्म और साहित्यिक सृजन कर्म में बड़ी कुशलता से पिरोकर दर्शकों को उनका साक्षी बनाया। संगोष्ठी के अंत में, प्रोफे. अनामिका ने बताया कि डॉ. विनोद जैसे बहुआयामी व्यक्तित्व से अनंत संवाद की संभावनाएं खुलती हैं। इस संगोष्ठी की सूत्रधार दिव्या माथुर समेत सभी उपस्थितों ने एक स्वर में कहा कि डॉ. विनय पर केंद्रित एक और कार्यक्रम आयोजित किया जाना चाहिए। 

कार्यक्रम का समापन मनोज मोक्षेन्द्र के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ। उन्होंने डॉ. विनय, प्रोफ़े. अनामिका, कहानीकार मनीषा को इस मंच पर उपस्थित होने के लिए धन्यवाद दिया। श्रोता-दर्शकों में मुख्य थे - डॉ. जय शंकर यादव, संध्या सिंह, शिखा वार्ष्णेय, डॉ. मधु शर्मा, कौशलेन्द्र सिंह, नीरज, सोनू यशराज, आशा बर्मन, अनूप भार्गव, आशीष रंजन आदि। कार्यक्रम में तकनीकी सहयोग प्रदान करने वाली टेक्नोक्रेट शिवि श्रीवास्तव भी उपस्थित थीं जिन्होंने वातायन-यूके के लिए vatayanrope.com नामक वेबसाइट का निर्माण किया है। 

न्यूज़ सोर्स : Literature Desk