लन्दन, १४-०८-२०२३: विगत दो वर्षों से अनवरत चल रही वातायन संगोष्ठियों के क्रम में दिनांक १२ अगस्त, २०२३ को संगोष्ठी क्रमांक १५४ का ऑनलाइन आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी मैथिली लोक साहित्य और संगीत पर आधारित थी जो लोकगीत शृंखला की १४वीं कड़ी थी। यह उल्लेखनीय है कि लन्दन स्थित 'वातायन-यूके' साहित्य, संस्कृति, संगीत और लोक परंपराओं पर केंद्रित संगोष्ठियों के अनवरत और अटूट आयोजन में वैश्विक स्तर पर उल्लेखनीय ख्याति अर्जित कर चुका है तथा भारत और विदेशों की साहित्यिक और सांस्कृतिक गलियारों में चर्चाओं के केंद्र में  रहा है।

संगोष्ठी क्रमांक १५४ में श्री नारायण कुमार की अध्यक्षता में कार्यक्रम का सुरुचिपूर्ण संयोजन और संचालन सुश्री आराधना झा श्रीवास्तव ने किया। आराधना स्वयं मिथिला की लोक संस्कृति में स्नात रही हैं और इस समय वह सिंगापुर में हिंदी की सेवा में दत्तचित्त रहते हुए डॉ. संध्या सिंह के साहचर्य में सिंगापुर हिंदी संगम से जुड़ी हुई हैं। 

कार्यक्रम का श्रीगणेश करते हुए उन्होंने सर्वप्रथम मिथिला के यशस्वी कवि यात्री जी की एक रचना से किया। उन्होंने 'लोक' शब्द की विवेचना करते हुए बताया कि यह अभिजात्य संस्कार और पांडित्य चेतना से विलग परंपरागत रूप से जन-समुदाय से संबद्ध है। मिथिला की लोक संस्कृति ने विभिन्न प्रकार के संक्रमणों को झेलते हुए स्वयं को आज तक अक्षुण्ण बनाए रखा है। 

कार्यक्रम के अगले चरण में शास्त्रीय गायिका सुश्री सुष्मिता झा ने अपने मधुर स्वर में शारदे माँ की वंदना प्रस्तुत की जिसे सुनकर सभी उपस्थित जन झूम उठे। तदनन्तर, वातायन-यूके की संयोजिका दिव्या माथुर के निर्देशन में और संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि श्री गणेश ठाकुर की गरिमामयी उपस्थिति में, यात्रा-सलाहकार, वेब-डिज़ाइनर तथा बाल साहित्य में विशेष रूचि रखने वाली सुश्री शिवि श्रीवास्तव द्वारा सृजित-निर्मित वातायन वेबसाइट का लोकार्पण किया गया। इस वेबसाइट के बारे में शिवि ने परिचयात्मक विवरण दिया और इसे सभी उपस्थितों के सामने प्रदर्शित भी किया। यह उल्लेख भी किया गया कि अक्टूबर २०२३ में लन्दन में आयोज्य भारोपीय हिंदी महोत्सव को इस वेबसाइट के जरिए बेहतर ढंग से प्रसारित किया जा सकेगा। संगोष्ठी के अध्यक्ष ने इस वेबसाइट के लिए दिव्या माथुर को बधाई दी।  मंच पर उपस्थित हिंदी गीति-काव्य के विश्व-प्रसिद्ध रचनाकार श्री बुद्धिनाथ मिश्र ने इस नवजात वेबसाइट को आशीर्वचन देते हुए कहा कि वे वातायन से बहुत पहले से ही जुड़े हुए हैं तथा दिव्या माथुर के साथ उनके घनिष्ठ पारिवारिक संबंध रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारे लोक और शास्त्र की अवधारणा यूरोपीय अवधारणा से भिन्न है तथा हम शास्त्र के मूल के रूप में लोक को देखते हैं। अपने संक्षिप्त वक्तव्य के पश्चात् गीतकार मिश्र ने पति-पत्नी के मधुर संबंधों पर आधारित एक स्वरचित मैथिल गीत गाकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। फिर, सुष्मिता झा ने इस आठ सोमवारीय सावन मास को महिमामंडित करने के लिए पुन: एक गीत सुनाया जो मनभावन सावन माह पर ही आधारित था। इस मैथिल गीत-शृंखला में पुणे स्थित एक विश्वविद्यालय में कार्यरत एसोसिएट प्रोफ़ेसर मानवर्धन कंठ ने अपनी मातृभाषा में गीत सुनाए जाने के आमंत्रण पर अपनी खुशी ज़ाहिर करते हुए अपना एक स्वरचित मैथिल गीत सुनाया जो उनके 'चूड़ा दही चीनी' एल्बम में संकलित है। मैथिल गीत-संगीत कार्यक्रम के अगले क्रम में लेखन, गायन  आयुर्विज्ञान में विशेष अभिरुचि रखने वाली, मधुर कंठ की स्वामिनी श्रीमती रंजू मिश्रा ने चंद पंक्तियों का भगवती के स्मरण में मंगलाचरण गुनगुनाते हुए, एक भोजपुरी में मल्हार-गीत सुनाकर संगीत-प्रेमियों को विस्मित कर दिया। 

 इस प्रकार, यह संगोष्ठी मिथिला के लोक जीवन की साहित्यिक और सांगीतिक पृष्ठभूमि में आयोजित की गई। प्रतिभागी गीतकारों ने मधुर मैथिल भाषा में ही अपनी बातें भी रखीं। कार्यक्रम के अध्यक्षीय भाषण में श्री नारायण कुमार ने कहा कि आज का कार्यक्रम आनंददायक, मनभावन, मनोरंजक और शिष्ट रहा है। उन्होंने बताया कि शास्त्रीय गीतों का उद्भव लोक संगीत से ही हुआ है। लोक गीतों का उद्भव गाय, बकरी और भेड़ चराने वाले ग्वालों-गरेड़ियों से हुआ है। उन्होंने दिनकर और विद्यापति की उन रचनाओं को उद्धृत किया जिनमें मिथिला के लोक जीवन का वर्णन है। विद्यापति की भाषा से स्वयं रवीन्द्रनाथ टैगोर भी बहुत प्रभावित रहे हैं। श्री नारायण ने स्वयं द्वारा विरचित एक सोहर-गीत भी सुनाया। 

संगोष्ठी के समापन पर, आराधना झा श्रीवास्तव ने एक मैथिल लोकगीत सुनाया। डॉ. संध्या सिंह ने सभी प्रतिभागियों और श्रोता-दर्शकों के प्रति  मंच पर उपस्थित रहने के लिए आभार प्रकट किया। ज़ूम के माध्यम से जुड़े दर्शकों और श्रोताओं में मुख्य थे- शैल अग्रवाल, जय वर्मा, डॉ. राजीव श्रीवास्तव, लक्ष्मण डेहरिया, आशीष रंजन आदि। 

 

(प्रेस विज्ञप्ति, डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)

न्यूज़ सोर्स : Literature Desk