लन्दन, २७-०८-२०२३: 'वातायन-यूके' के अंतरराष्ट्रीय मंच पर दिनांक २६-०८-२०२३ (शनिवार) को प्रवासी संगोष्ठी-१५५ का आयोजन किया गया। इस मंच पर स्मृति-शेष रह चुकी नामचीन साहित्यिक शख्सियतों से संबंधित कोई ३० शृंखलाएं पहले ही आयोजित की जा चुकी हैं; कुंवर नारायण, विद्या निवास मिश्र, कृष्णा सोबती, जगदीश चतुर्वेदी, केदार नाथ सिंह, अमृता प्रीतम, मुक्तिबोध, मन्नू भंडारी, भीष्म साहनी आदि जैसे युगांतरकारी साहित्यकारों के साहित्यिक अवदान और उनके व्यक्तित्व पर पहले ही चर्चा की जा चुकी है। इसी क्रम में, स्मृति एवं संवाद श्रृंखला - ३१ का आयोजन किया गया। ज्ञानपीठ और साहित्य अकादमी सहित अनेकानेक सम्मानों  से अलंकृत कुर्रतुल ऐन हैदर पर केंद्रित इस कार्यक्रम में वैश्विक हिंदी परिवार का भी सहयोग रहा है। इस संगोष्ठी की अध्यक्षता की-दिल्ली विश्वविद्यालय के इंद्रप्रस्थ कॉलेज की प्रोफ़ेसर तथा सुविख्यात साहित्यकार, समीक्षक, आलोचक और अनुवादक डॉ. रेखा सेठी ने, जबकि इस संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि थीं - सुकृता पॉल कुमार जिनका कुर्रतुल ऐन हैदर से नजदीकी संबंध रहा है। संगोष्ठी का सुरुचिपूर्ण संचालन किया लन्दन की कवयित्री आस्था देव ने।

कार्यक्रम के आरंभ में आस्था देव ने कुर्रतुल ऐन हैदर का संक्षिप्त तथा समीचीन परिचय दिया। उन्होंने बताया कि कुर्रतुल ऐन हैदर ने अपने कथा-साहित्य में समाज और नारियों का चित्रण अलग ढंग से किया है। उन्होंने बताया कि उन्होंने सर्वप्रथम कुर्रतुल ऐन हैदर का साक्षात्कार दूरदर्शन पर देखा था और तभी से वे हैदर से प्रभावित और प्रेरित रही हैं। हैदर के बारे में यह भी बताया गया कि उन्होंने अपने कथा-साहित्य में दबी हुई और पिछड़ी महिलाओं के बजाए उन महिलाओं के संबंध में ज़्यादा उल्लेख किया है जो सशक्त समाज से तो आती हैं किन्तु वे मज़बूर होती हैं। तत्पश्चात आस्था ने संवाद शृंखला की प्रतिभागी संवादकार प्रोफ़े. रेखा सेठी और सुकृता पॉल कुमार के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि जब प्रोफ़े. रेखा सेठी मंच पर आती हैं तो वे किसी भी साहित्यकार के बारे में विशिष्ट जानकारी देती हैं।

तदनन्तर, प्रोफ़े. रेखा सेठी ने चर्चा में पहलकदमी करते हुए बताया कि कुर्रतुल ऐन हैदर ने भारतीय साहित्यिक परंपरा को जीवन्त रूप प्रदान किया है। हैदर ने जिस कॉलेज से अध्ययन किया था, वहीं से उन्होंने भी पढ़ाई की है लेकिन हैदर उनसे सुपर सीनियर रही हैं। कुर्रतुल ऐन हैदर वर्ष १९४१ से १९४५ तक इंद्रप्रस्थ कॉलेज में बतौर छात्रा थीं जबकि रेखा सेठी उसी कॉलेज की १९८४-८५ में छात्रा थीं। उन्होंने बताया कि उन्होंने कॉलेज की पत्रिका 'प्रदीप' के वर्ष १९४४ के अंक में हैदर का एक अंग्रेज़ी आलेख पढ़ा था। उस लेख में हैदर ने तत्कालीन प्रगतिशील लेखकों तथा उस समय के लेखन के बारे में चर्चा की है। उन्होंने ११ वर्ष की आयु से ही लिखना आरंभ कर दिया था तथा उनकी पहली कहानी उसी समय प्रकाशित हुई थी। कुर्रतुल ऐन हैदर ने बहुत पहले उर्दू में एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था- 'रेल में'। उस लेख में एक रेल डिब्बे में किसी युवा लड़की की भावनाओं को व्यक्त किया गया है। प्रोफ़े. सेठी ने बताया कि उन्होंने पहले उस लेख का हिंदी तर्ज़ुमा करवाया फिर उसे पढ़ा। उन्होंने कुर्रतुल ऐन हैदर की दिलचस्प चर्चा इस्मत चुगताई की तुलना करते हुए की तथा अपने वक्तृत्व से मंच पर उपस्थित समस्त श्रोताओं को चमकृत कर दिया। उन्होंने यह भी बताया कि कुर्रतुल ऐन हैदर आज़ाद ख्यालों वाली लेखिका थीं। 

जब मंच पर सुकृता पॉल कुमार ने अपनी उपस्थिति दर्ज़ की तो श्रोता-दर्शकों में कौतुहल और जिज्ञासा की लहर उमड़ने लगी। इसका कारण था - सुकृता का कुर्रतुल ऐन हैदर के साथ निकट का पारिवारिक संबंध। पॉल ने हैदर के बाबत संस्मरणात्मक उल्लेख करते हुए बताया कि उनके पिता श्री जोगिन्दर सिंह बेदी उर्दू के बड़े लेखकों में शुमार होते थे। इसलिए, उनके घर में  उर्दू के बड़े-बड़े लेखकों का आना-जाना लगा रहता था। उनके घर पर ही साहित्यिक जमावड़े में प्रगतिशील लेखकों और प्रगतिशील साहित्य के बाबत चचाएँ हुआ करती थीं जिनसे वे प्रेरित हुई थीं। एक ऐसे साहित्यिक माहौल में अनेकानेक संगोष्ठियां हुआ करती थीं तथा वर्ष १९३६ में कई सेमीनार हुए जहाँ प्रगतिशील साहित्य और आधुनिक साहित्य पर चर्चाएं होती थीं। चर्चा के इसी क्रम में पॉल ने बताया कि कुर्रतुल ऐन हैदर का उपन्यास 'आग का दरिया' एक विशेष उपन्यास है जिसमें समय को चार भागों में विभक्त किया गया है। यह उपन्यास तीसरी शताब्दी से आरंभ होकर बीसवीं सदी तक का चित्रण करता है जिसमें चार पात्र हैं - नामत: गौतम, चंपा, कमल और हरिशंकर। पॉल ने कहा की हैदर ऐसी महिला थीं जिन्हें कोई भी कार्य करते हुए कोई झिझक नहीं होती थी और उन्हें कभी-कभार तो सजे हुए मंच पर ही लिपस्टिक लगाते हुए और आईने में अपना मेक-अप निहारते हुए देखा गया है।   

संगोष्ठी आद्योपांत अत्यंत ज्ञानोपयोगी थी जिसने श्रोता-दर्शकों की जिज्ञासा को संतुष्ट किया और बढ़ाया भी। दिव्या माथुर ने कहा कि अभी कुर्रतुल ऐन हैदर जैसी महान लेखिका के बारे में बहुत-कुछ जानने के लिए यह संगोष्ठी छोटी है। प्रोफ़े. सौभाग्या कोराले समेत कुछ श्रोताओं ने हैदर के बारे में और भी जानकारी प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की। इसी क्रम में, आस्था देव ने इसी वर्ष १३ से १५ अक्तूबर तक लन्दन में होने वाले भारोपीय हिंदी महोत्सव के संबंध में उल्लेख किया। कार्यक्रम के समापन पर प्रोफ़ेसर रेखा सेठी ने मंच पर उपस्थित सभी श्रोता-दर्शकों को धन्यवाद ज्ञापित किया। उपस्थित श्रोता-वृन्द में प्रमुख थे डॉ. पद्मेश गुप्त, डॉ. राजीव श्रीवास्तव, डॉ, जयशंकर यादव, डॉ. ईश्वर पवार, डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र, शैलजा सक्सेना, पांडेय सरिता, बिनीता सहाय, शालू बब्बर, सौभाग्य कोराले, संध्या सिंह, एन. लक्ष्मी,फ़िरोज़ खान, राजू मिश्र, पूजा अनिल, नीतू आदि। 

 

न्यूज़ सोर्स : literature desk