लन्दन : १ अगस्त, २०२२ : वैश्विक "वातायन" मंच के बैनर तले दिनांक ३० जुलाई, २०२२ को ११२ वीं साप्ताहिक संगोष्ठी का भव्य आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी भारत के विशेषतया पूर्वी हिस्सों में लोकप्रिय लोकगीतों की प्रस्तुति पर केंद्रित था। यह संगोष्ठी लन्दन के समयानुसार सायं ४ बजे से ५ बजे तक तथा भारत के समायानुसार ८.३० बजे से रात्रि के ९.३० बजे तक आयोजित हुई। संगोष्ठी की रुपरेखा इस प्रकार थी :-
 
स्वागत: आस्था देव
संयोजक : दिव्या माथुर
प्रस्तोता : संध्या सिंह अध्यक्ष : विदुषी सुचारिता गुप्ता
प्रस्तावना : प्रोफ़ेसर चन्द्रकला त्रिपाठी
गीत : ऋतु प्रिया खरे
आस्था देव: धन्यवाद ज्ञापन
 
आरम्भ में, संध्या सिंह ने लोकगीतों के संबंध में विस्तृत परिचय दिया। उन्होंने बताया कि लोकगीतों की परंपरा अति प्राचीन है जो हमारे जीवन के प्रतिबिंब हैं और जो इस जीवन का स्पंदन भी हैं। इनके संबंध में कोई लिखित दस्तावेज़ नहीं है, लेकिन हैं तो ये ऐतिहासिक। लोकगीतों की परंपरा से जुड़े रहने का मतलब है--अपने जीवन से जुड़े रहना। तदनन्तर, आराधना झा श्रीवास्तव ने प्रस्तोता के रूप में मंच-संचालन का कार्य-भार संभाला और उन्होंने अपने अनोखे अंदाज़ में कैलिफोर्निया की ऋतु प्रिया खरे को आमंत्रित किया जिन्होंने लोकगीतों का सन्दर्भ देते हुए इन्हें अपने सुमधुर स्वर में प्रस्तुत किया तथा पूरे मंच को आनंद-विभोर कर दिया। उन्होंने सर्वप्रथम एक मल्हार--'गरज-गरज गहन बरसन लागे', सुनाया जिसे इसी वर्षा-ऋतु में गाया जाता है। इसके बाद उन्होंने पूर्वी भारत में लोकप्रिय गीत-विधा 'सावन' (शिव शंकर चले कैलाश, बुंदिया पड़ने लगी) को लोकधुन में गाया। उन्होंने मिर्ज़ापुर में पालित-पोषित लोकगीत कजरी--'कैसे खेलन जइबो सावन में कजरिया, बदरिया घिर आई ननदी' का भी गायन प्रस्तुत किया। तदनन्तर, उन्होंने 'झूला झूल रही सिया सुकुमारी' गीत प्रस्तुत किया जो पूरब में गाया जाने वाला झूला-लोकगीत है। उन्होंने एक विदाई लोकगीत 'सैयां जाने दे नैहरवा, कजरिया बीती जाए' को भी अपने सुमधुर स्वर में सुनाया।
 
तदनन्तर, आराधना झा श्रीवास्तव ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर और आर्य महिला कालेज की पूर्व प्राचार्य- चन्द्रकला त्रिपाठी को कजरी, मल्हार, झूला, हिंडोला, सावन आदि लोकगीतों के संबंध में वक्तव्य देने के लिए आमंत्रित किया। डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि चूँकि भारत एक कृषि-प्रधान देश है इसलिए, ये सारे लोकगीत कृषि उपज, खेतों में पौधों के पल्लवन, फसलों की कटाई से संबंधित उत्सवों से सरोकार रखते हैं। इस देश की दो ऋतुएं-वर्षा ऋतु और वसंत ऋतु का बड़ा महत्व है। पहली, सृजन की ऋतु है और दूसरी, प्रेम की। इनमें वर्षा ऋतु, जीवन के विभिन्न रंगों को बिंबित और उत्सवित करती है जिन्हें हम आयोजित करते हुए नाना-प्रकार के लोकगीतों से अपनी स्मृति में बनाए रखते हैं। उन्होंने 'कजरी' गीत की महत्ता पर भी, जो एक सावनी गीत है, प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कजरी विविधरंगी है जिसमें प्रेम के संयोग-वियोग, विरह, जीवन के सुख-दुःख की घटनाओं जैसे विभिन्न पक्षों आदि का निरूपण होता है। उन्होंने कतिपय लोकगीतों की सस्वर गीतमय प्रस्तुति करके सभी दर्शकों को अचंभित कर दिया। उन्होंने कई लोकगीतों के अतिरिक्त एक कजरी सुनाई जिसके बोल थे 'जुआ खेलेले जुआरी सारी रतियाँ ना।'
 
इस संगोष्ठी का सबसे आकर्षक क्षण वह था जबकि बनारस की लोकगीतों की शास्त्रीय गायिका- सुचारिता गुप्ता ने मंच पर शास्त्रीय गीतों की फुलझड़ियां छोड़नी शुरू की और समस्त श्रोता-दर्शकों को आनंद-रस-स्नात कर दिया। उन्होंने 'श्याम ना आए', 'मइया झूलन चलिय झुलनवा, पवनवा चंवर डुलावे ना', 'रिमझिम बरसे ले बदरिया, सखियाँ गावें ले कजरिया', 'चौखट्टा पर झूम-झूम के सखियाँ कजरी गावे ले', 'हो पिया मेंहदी लियाए द मोती झील से, जाइके साईकिल से ना', 'सेजिया पे लोटे काला नाग हो, कजरी सून कईल बलमू', 'जमुना किनारे पड़ाई द हिंडोला, बंसी वाले सांवरिया' जैसे अद्भुत लोकगीत को पूरी शिद्दत से शास्त्रीय अंदाज़ में गाकर श्रोताओं को आत्मविभोर कर दिया।
 
तदनन्तर, कुछ श्रोताओं, यथा- कादम्बरी और निखिल कौशिक ने भी ऐसे लोकगीतों की कुछ पंक्तियाँ गाकर सुनाईं तथा पद्मश्री टोमियो मिजोकामी ने अपने उद्गार व्यक्त किए।
 
उल्लेखनीय है कि ब्रिटेन के माननीय सांसद श्री वीरेंद्र शर्मा, जो वातायन मंच की सभी गोष्ठियों में उपस्थित रहते हैं, ने इस कार्यक्रम में सुन्दर प्रस्तुतियों के लिए सभी गायिकाओं और वक्ताओं को बधाई दी।
 
ऐसे कार्यक्रमों की सूत्रधार दिव्या माथुर ने इस संगोष्ठी के संबंध में अपने उद्गार प्रकट करते हुए कहा कि वह इस कार्यक्रम में इतनी सुन्दर प्रस्तुतियों से अत्यंत अभिभूत हूँ और यह कि उन्होंने सोचा भी नहीं था कि यह कार्यक्रम इतना प्रभावशाली होगा।
 
कार्यक्रम का समापन आस्था देव के धन्यवाद-ज्ञापन से हुआ। उन्होंने मंच पर उपस्थित तोमियो मिजोकामी, वीणा अग्निहोत्री, उमंग सरीन, कादंबरी मेहरा, अनूप भार्गव, शैली अग्रवाल, चंद्रमणि पांडेय, महादेव कोलूर, विजय नागरकर, वी. के. सिंह, आदेश गोयल, अक्षय त्यागी, समृद्धि, विनीता कृष्णा, अरुण सभरवाल, विभा वाही, रेनू शाह, शंकर सिंह, अरुण अजितसरिया, शबनम, मीरा सिंह, उल्फत मुखिबोवा जैसे मंच पर उपस्थित संस्कृति और साहित्य-प्रेमी विद्वत जनों को हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित किया।
 
 
 
 
प्रेस विज्ञप्ति)
--डॉ. म. मो.

 

न्यूज़ सोर्स : wewitness literary team