लन्दन, ९ सितम्बर, २०२२ : दिनांक ८ सितम्बर, २०२२ को 'वातायन' मंच के तत्वावधान में तथा वैश्विक हिंदी परिवार के सहयोग से 'वातायन वैश्विक संगोष्ठी-१२२' के अंतर्गत 'लेखक-चित्रकार साक्षात्कार श्रृंखला-८' का आयोजन किया गया। इस विशेष संगोष्ठी में सुप्रसिद्ध साहित्यकार तथा चित्रकार - प्रयाग शुक्ल के साहित्यिक अवदान और कला-जगत में उनकी उपलब्धियों पर चर्चा हुई। इस संगोष्ठी की अध्यक्षता श्रुति लखनपाल टंडन ने की।  कार्यक्रम की संचालक--सुपरिचित लेखिका, पत्रकार और चित्रकार तिथि दानी थीं। 

संगोष्ठी का शुभारंभ करते हुए तिथि दानी ने कहा कि यह उनका सौभाग्य है कि उन्हें बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रयाग शुक्ल के साथ संवाद करने और उनके व्यक्तित्व के परतों को खोलने का सुअवसर मिला है। उन्हें अनेकानेक साहित्यिक सम्मान मिले हैं और उन्होंने कई कला प्रदर्शनियां भी लगाई हैं। तदनन्तर, उन्होंने संगोष्ठी की अध्यक्ष श्रुति लखनपाल टंडन का परिचय कराया और बताया कि श्रुति एक त्वचारोग विशेषज्ञ हैं तथा उनकी कला में गहरी रूचि है। उषार्थ आर्ट फॉउंडेशन की संस्थापक, श्रुति टंडन कला-जगत में अपने योगदान के साथ-साथ वंचित और विकलांग लोगों की मदद में भी दत्तचित्त हैं। 

तिथि दानी के प्रश्नों का उत्तर देते हुए प्रयाग शुक्ल ने कहा कि उन्होंने संपादक और लेखक होते हुए अनुवाद-कार्य भी किया है जिसे वह साहित्य-लेखन की भांति ही लेते हैं। लेखक के लिए अनुवाद एक रचनात्मक कार्य है। उन्होंने टैगोर की गीतांजलि, मोहम्मद रफ़ी की जीवनी, महात्मा गाँधी की आत्मकथा जैसे साहित्य का अनुवाद किया है तथा उन्हें अनुवाद-कार्य के लिए साहित्य अकादमी सम्मान भी प्राप्त हो चुका है। शुक्ल ने बताया कि किसी भी राजनीतिक व्यवस्था में रचना ही महत्वपूर्ण होती है। अपनी रचना के माध्यम से वह अपने प्रतिरोध तथा अपने विचारों को व्यक्त करता है। उन्हें अपनी १८ वर्ष की अवस्था में ही इस बात का पता चल गया था कि वह एक रचनाकार हैं तथा इस हैसियत से उन्हें अपने समय के सभी महत्वपूर्ण लेखक जानने-पहचानने लगे थे। उन्होंने बताया कि किसी विशेष क्षण में ही कोई लेखक रचनाकार होता है तथा जब वह नहीं लिख पाता है तो वह दुनियाभर के रचनाकारों को पढ़ता है। 

कविता के संबंध में प्रयाग शुक्ल ने कहा कि आज के संबंध में रीतिबद्ध रचनाकारों के अतिरिक्त अनेक ऐसे रचनाकार भी हैं जो श्रेष्ठ रचनाएं कर रहे हैं। अपने कलात्मक रुझान के बारे में शुक्ल जी बताते हैं कि जब वह फ़तेहपुर के स्कूल में पढ़ते थे तभी उनमें कला के प्रति आकर्षण पैदा हो गया था तथा वह अपने साथी कलाकारों की कलाकृतियों को देखकर चकित हो जाया करते थे। इसी चकित होने की प्रक्रिया में वह चित्रकार बनने की दिशा में आगे बढ़ गए। जब वह दिल्ली आए तो उन्हें कथाकार राम कुमार वर्मा ने अपने स्टूडियो में रहने के लिए जगह दी और उसके बाद उनके जीवन में बड़ा बदलाव आया। वह अज्ञेय, मोहन राकेश, मनोहर श्याम जोशी, शमशेर सिंह जैसे महान शख्सियत के संसर्ग में रहे। 

संगोष्ठी की अध्यक्ष श्रुति लखनपाल टंडन ने बताया कि प्रयाग जी का लालन-पालन बंगाली परिवेश में हुआ था। उनके पिता सोते समय उन्हें यूरोपीय लेखकों की कहानियां सुनाया करते थे जिनका बहुत गहरा प्रभाव प्रयाग जी पर पड़ा। जब वह दिल्ली आए तो उन्होंने वहां के कलाकारों की कृतियों को देखा करते थे और लेखकों के साथ उनकी बातचीत होती थी। इस तरह से उनमें कलाकार और लेखक का विकास हुआ। उन्होंने बताया कि इस कोरोना काल में उनकी पेंटिंग विशेष रूप से मुखर हुई है। 

कार्यक्रम का समापन करते हुए डॉ. मनोज मोक्षेंद्र ने मेहमान लेखक और चित्रकार प्रयाग शुक्ल और संगोष्ठी की अध्यक्ष श्रुति लखनपाल टंडन को उनके इतने अच्छे संवाद और वक्तव्य के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने जूम और यूट्यूब के माध्यम से जुड़े हुए श्रोता-दर्शकों का भी तहे-दिल से धन्यवाद दिया और कहा कि उनकी उपस्थिति से वातायन मंच गुंजायमान हो जाता है। उपस्थितों में ऋचा जैन, संध्या सिंह, विजय राणा, ममता पंत, अनूप भार्गव, डॉ. जयशकर यादव, आदेश पोद्दार, कैलाश बाजपेयी, सरिता पांडेय, रिद्धिमा, जय वर्मा, महेश स्वामी आदि मुख्य थे। तदनन्तर, उन्होंने २२ नवम्बर को आयोज्य १२३वीं संगोष्ठी के बारे में जानकारी दी। इस संगोष्ठी में "दो देश दो कहानियां" भाग ८ के अंतर्गत  रूस की कथाकार प्रगति टिपणिस तथा ब्रिटेन की  कथाकार आस्था देव की कहानियों का पाठ होगा जिसकी अध्यक्षता सुप्रसिद्ध लेखिका नासिरा शर्मा करेंगी। 

न्यूज़ सोर्स : wewitness literary desk