ग्रेटर नोएडा, दिनांक १७ अक्टूबर २०२२ : सुप्रसिद्ध साहित्यकार, श्री सुरेंद्र कुमार अरोड़ा के संयोजन और प्रबंधन में उनके साहिबाबाद-गाज़ियाबाद स्थित आवास पर पुस्तक विमोचन एवं साहित्यिक संगोष्ठी से संबंधित कार्यक्रम संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम में डॉ. मनोज मोक्षेंद्र के काव्य संग्रह "तरल तथ्यों के दौर में" तथा सुरेंद्र कुमार अरोड़ा द्वारा संपादित दो पुस्तकों "बेबसी" (कहानी संग्रह) और "इकरा-एक संघर्ष" (लघुकथा संग्रह) का लोकार्पण हुआ। लोकार्पण समारोह के आरंभ में उपस्थित साहित्यकारों ने अपने परिचयात्मक सत्र में विभिन्न विषयों पर परस्पर चर्चा की। मंच पर उपस्थित साहित्यकारों और प्रबुद्धजनों में थे : सुरेंद्र कुमार अरोड़ा, ओम प्रकाश कश्यप, रवीन्द्र कांत त्यागी, राम कुमार कंवर, डॉ. राजवीर सिंह कमल, मीना पांडेय, कुसुम जोशी, शशि किरण, छन्नू सिंह, सन्दीपन आदि।
 
कार्यक्रम के आरंभ में सुरेंद्र कुमार अरोड़ा ने डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र के काव्य संग्रह की विशद समीक्षा की। उन्होंने कहा कि चारो तरफ विसंगतियों से जूझती संवेदनाओं के पोषण के नाम पर संवेदनाओं को रौंदती हुई संवेदनाओं में अपने वाकचातुर्य के बल पर स्वयं को जस्टिफाई करने वाले प्रबंधन तंत्र में यह समझना बेहद कठिन होता जा रहा हो कि सच के आँगन का वासी कौन है और झूठ के जंगल में दलदल का जखीरा किसने खड़ा किया है। उन्होंने मोक्षेंद्र की कुछ कविताओं की पंक्तियाँ भी उद्धृत कीं--

जागते जागते थककर 

घर भी सोते हैं

बस , कुछ दुर्लभ  मौकों पर
जबकि लोग  गए होते  हैं अन्यत्र
किसी जलसे या जश्न  में​...
 ​
       ​उन्होंने मोक्षेंद्र के ​ बिम्ब​-विधान पर प्रकाश डालते हुए निम्नलिखित पंक्तियाँ उद्धृत कीं--​ :
     
 देखो 
मेरे पुरखे
दब गए हैं
कहीं 
यहीं कहीं
यहाँ वट  था 
वहां झरना था 
नीचे तलछट था 
प्रभात में संवहनशील मलय था
नीम के भर में गौरेये थे
बादलों की छत के नीचे 
कुलांचें ​भरते  गीध भी थे
नीचे आँगन था
​​हहराते प्रदेश का
​***      ***​

       ​उन्होंने कहा कि ​कविवर मनोज के ह्रदय से निकली ​तथा ​मानव​-पीड़ा से भरी उत्कृष्ट लेखनी का संचय है​--उनका यह तीसरा  कविता  ​संग्रह। ​उनकी कविता​,​ ह्रदय की कोमलता से चलकर मस्तिष्क की सृजन​-​क्षमता तक की निर्मल यात्रा है, जिसमें भावनाएं उन क्षणों को जीवंत करती हैं जहाँ कभी प्रेम तो कभी ममत्व से भरपूर वात्सल्य या फिर देश के बलिदानियों की गाथा​ है​, तो कहीं समाज के सबसे निचले व्यक्ति के ​उद्धार​ को समर्पित स्वर ​पूरी लयात्मकता से प्रस्फुटित होते हैं।समर्थ कहानीकार​, उपन्यासकार और कवि--मनोज मोक्षेन्द्र ने अपने इस संग्रह में आम आदमी की रोजमर्रा की चर्या में जिंदगी के संघर्षों को जीवंत किया ​है। एक  सुन्दर बानगी ​देखिए​ :
इस नए साल पर
घटित इष्ट-अनिष्ट के मलाल पर
नहीं याद करेंगें बीते  साल को​,​
नहीं याद करेंगें कि
लाख यत्नों के बावजूद
बहन के हाथ पीले नहीं करा सका
और बरसों पहले भागे भाई को
खोजने - बुलाने की जहमत भी नहीं उठा सका
***           ****         ***
          ​उन्होंने कहा कि इस संग्रह की हर कविता, कवि के सामाजिक​ सरोकार को शब्दों के कालीन में कुछ इस तरह पिरोती है कि संग्रह की ​कविताओं को ​पढ़ते हुए धरा के सभी निवासिओं के साथ आत्मीय सम्बन्ध खोजने की यात्रा सी लगती है। संग्रह में कवि मनोज की लगभग अस्सी कवितायेँ हैं जिनमें लगभग सारी ​कविताएं ​मानवीय उठापठक ​का पूरी मनोवैज्ञानिकता के साथ जीवन के विभिन्न दृष्टिकोणों से परिचय करवाती हैं। इन्हें पढ़ते हुए लगता है​ कि हम किसी यात्रा के ऐसे  पथिक हैं जिसमें और भी ढेर सारे सहयात्री हमारे साथ हैं, जो जीवन के वास्तविक उद्देश्यों ​की तलाश कर रहे ​हैं। इसी सन्दर्भ में उन्होंने आचार्य राचंद्र शुक्ल का एक दृष्टान्त भी प्रस्तुत किया। उन्होंने आगे कहा कि कवि मनोज ने ह्रदय की  मुक्तावस्था में डूब​कर इन कविताओं को रचा है। हम इनका रसास्वादन करते हैं, इनसे संवेदित  होते हैं और जब वे व्यथित होते हैं तब हम भी स्वयं को उनकी व्यथा ​में स्वयं को शामिल​ पाते हैं। 
संगोष्ठी के अगले चरण में उपस्थित साहित्यकारों ने सुरेंद्र कुमार अरोड़ा द्वारा संपादित दोनों पुस्तकों "बेबसी" (कहानी संग्रह) और "इकरा-एक संघर्ष" (लघुकथा संग्रह) ​के संबंध में अपने-अपने मंतव्य दिए जबकि डॉ. मोक्षेन्द्र ने सुरेंद्र कुमार अरोड़ा के संपादन-कौशल की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि सुरेंद्र जी का वैचारिक आयाम अत्यंत विस्तीर्ण और आश्चर्यजनक है जिसका सकारात्मक प्रभाव उनके संपादन कौशल पर भी पड़ता है।
 
कार्यक्रम के समापन-चरण में विशिष्ट अतिथि श्री रविंद्र कांत त्यागी ने अपनी कहानी 'मोगरे के फूल' का वाचन किया। श्रीमती मीना पांडे, श्रीमती कुसुम जोशी, तथा श्रीमती शशि किरण ने कविताएं ​सुनाईं जबकि मनोज ​मोक्षेंद्र ने अपने विमोचित काव्य संग्रह से कविताओं का पाठ किया। डॉ. राजवीर सिंह कमल, राम कुमार कंवर​, छन्नू सिंह और संदीपन ​ने प्रासंगिक कविताओं का सस्वर पाठ किया। संगोष्ठी के अंत में श्री सुरेंद्र​ कुमार अरोड़ा​ ने ​एक लघुकथा का पाठ ​करके सभी उपस्थितों को मानवीय संवेदना से लबरेज़ कर दिया। उन्होंने कहा कि वह अपने संपादन में एक पत्र-विधा पर आधारित पुस्तक निकालने जा रहे हैं। उनके इस प्रस्ताव पर सभी ने अपनी-अपनी सहमति जताई।
 
संगोष्ठी का समापन सभी उपस्थितों के प्रति धन्यवाद-ज्ञापन से हुआ जबकि प्रख्यात साहित्यकार और सहकारिता विषय पर अनेक शोध-ग्रंथों के लेखक श्री ओम प्रकाश कश्यप ने अपने आशीर्वचनों से सभी को भाव-विभोर कर दिया।
न्यूज़ सोर्स : Literary Desk Wewitness