विशिष्ट अतिथि : डॉ कमल किशोर गोयनका 

अध्यक्ष : अनिल शर्मा जोशी 

वक्ता : डॉ. बीना शर्मा, मुन्नी श्रीवास्तव और जुट्टा ऑस्टिन

प्रस्तुति : डॉ. निखिल कौशिक, शिखा वार्ष्णेय, तिथि दानी 

प्रस्तोता : आस्था देव

धन्यवाद ज्ञापन : डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र 

लन्दन, ०७ अगस्त २०२२ : वैश्विक साहित्यिक और सांस्कृतिक मंच 'वातायन' के बैनर तले तथा प्रख्यात साहित्यकार दिव्या माथुर के संयोजन में, दिनांक ०६ अगस्त, २०२२ को एक ऑनलाइन संगोष्ठी (संगोष्ठी-११३) का आयोजन किया गया। इस आयोजन का प्रमुख उद्देश्य इंग्लैण्ड के लब्ध-प्रतिष्ठ साहित्यकार डॉ. सत्येंद्र श्रीवास्तव के साहित्यिक अवदान और विशेषतया उनके कवि-कर्म पर चर्चा करना था। 

सर्वप्रथम, संगोष्ठी की प्रस्तोता आस्था देव ने डॉ. सत्येंद्र श्रीवास्तव का संक्षिप्त परिचय दिया। उन्होंने कहा कि डॉ. श्रीवास्तव का नाम साहित्य जगत में किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उन्होंने अनेक साहित्यिक पुस्तकों की रचना की तथा वह अनेकानेक राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय सम्मानों से अलंकृत हुए। वाराणसी में जन्मे और वहीँ से शिक्षित, डॉ. श्रीवास्तव ने उच्च शिक्षा के लिए लन्दन की तरफ रुख किया और वहां की साहित्यिक सर्किल में बहुत सक्रिय रहे। उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में शिक्षण-कार्य किया और इसी दौरान, उनकी अंग्रेजी कविताओं की कई पुस्तकें प्रकाशित हुईं। उन्हें अनेक पुरस्कारों के अतिरिक्त, हिंदी साहित्य के लिए विशेष अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्रदान किया गया। 


तदनन्तर, बहुमुखी साहित्यिक प्रतिभा के धनी, पद्मश्री डॉ. पद्मेश गुप्त ने अपने संपादन में प्रकाशित 'डॉ. सत्येंद्र श्रीवास्तव की समग्र कविताएं' नामक पुस्तक के बारे में परिचय दिया और बताया कि उनके इस पुस्तक के लिए डॉ. कमल किशोर गोयनका का विशेष योगदान रहा है। उन्होंने २०१७ में दिल्ली के एक मंच से डॉ. गोयनका के आदेश पर डॉ. श्रीवास्तव की समग्र कविताओं का संपादन कार्य आरंभ किया। डॉ. पद्मेश ने जुट्टा ऑस्टिन, अनिल शर्मा जोशी तथा डॉ. श्रीवास्तव की पत्नी मुन्नी श्रीवास्तव द्वारा इस पुस्तक में सहयोग के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने इस संपादित पुस्तक में अपनी भूमिका का मुक्त कंठ से वाचन भी किया। उसके उपरांत, डॉ. श्रीवास्तव की मित्र रह चुकी जुट्टा ऑस्टिन का वक्तव पढ़ा जिन्होंने बताया कि डॉ. सत्येंद्र उनके गुरु रहे और उन्हें हिंदी भी पढ़ाया। उन्होंने बताया कि मैं न केवल उनकी कविताओं का सम्मान करती हूँ अपितु उनकी सच्चाई और विवेक की कायल भी रही हूँ। मैं उनकी कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद करके गर्वित अनुभव करती हूँ। तत्पश्चात, जुट्टा ऑस्टिन ने डॉ. सत्येंद्र की स्वयं द्वारा अनुदित कविताओं का पाठ किया जिसमें प्रवाहित भाव-गंगा की सभी ने मुक्त कंठ से सराहना की। 

संगोष्ठी के अगले चरण में ख्यात साहित्यकार तिथि दानी ने डॉ. सत्येंद्र की पत्नी मुन्नी श्रीवास्तव की अपने स्वर्गवासी पति के प्रति उद्गार को पढ़कर सुनाया जिसमें डॉ. सत्येंद्र के जीवन के अनछुए पहलुओं पर चर्चा की गई थी। उनकी कविताओं का सस्वर पाठ करते हुए डॉ. निखिल कौशिक ने डॉ. सत्येंद्र द्वारा सर विंस्टल चर्चिल के संबंध में रची गई एक कविता का वाचन भी किया। 

अपने वक्तव्य में केंद्रीय हिंदी संस्थान की निदेशक बीना शर्मा ने कहा कि डॉ. सत्येंद्र श्रीवास्तव की कविताओं का प्रकाशन करके यह संस्थान प्रसन्नता का अनुभव करता है। वह एक बहु-आयामी रचनाकार थे। अनिल जोशीजी ने अपने आमुख में डॉ. श्रीवास्तव के साथ अपनी घनिष्ठता को बहुत सराहा है। अनिल जोशीजी ने अपने वक्तव्य में कहा कि डॉ. सत्येंद्र के मन में विंस्टन चर्चिल के प्रति सम्मान तो था ही, साथ में विद्रोह भी था। उनकी कविताओं में भारत के प्रति कटु आलोचना के साथ-साथ भक्ति-भाव भी है। डॉ. जोशी ने डॉ. श्रीवास्तव के कई अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालकर सभी को अचंभित कर दिया। उन्होंने कहा कि मैंने डॉ. सत्येंद्र के जीवन-काल में ही उनकी एक पुस्तक का संपादन भी किया। तदुपरांत, आस्था देव ने डॉ. कमल किशोर गोयनका द्वारा लिखित में दिए गए वक्तव्य को पढ़ा और डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र ने सभी प्रबुद्ध  वक्ताओं, मंच पर सहभागी साहित्यकारों तथा जूम और यू-ट्यूब के माध्यम से जुड़े श्रोता-दर्शकों को धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का समापन टोमियो मीजोकामी, अनूप भार्गव, डॉ. अरुणा अजितसरिया जैसे विद्वानों के उद्गार से हुआ। 

 

(प्रेस विज्ञप्ति )

 

न्यूज़ सोर्स : wewitness literary desk