लन्दन, १८ जून, २०२३ : 'वातायन-यूके' के बैनर तले वैश्विक हिंदी परिवार तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय के सहयोग से 'स्मृति एवं संवाद शृंखला-३०' का आयोजन दिनांक १७ जून २०२३ को किया गया। यह संवाद शृंखला 'वातायन-यूके प्रवासी संगोष्ठी' की १५०वीं कड़ी थी। इस संवाद शृंखला के अंतर्गत हिंदी साहित्य के लब्ध-प्रतिष्ठ साहित्यकार श्रीकान्त वर्मा के साहित्यिक अवदान पर चर्चा की गई और विशेषतया उनकी काव्यगत उपलब्धियों एवं रचनाकर्म के संबंध में इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय (दिल्ली विश्वविद्यालय) की प्रोफ़ेसर डॉ. रेखा सेठी ने विचार-विमर्श को आमंत्रित किया जबकि संगोष्ठी की अध्यक्षता भी सुश्री सेठी ने ही की।
इस संवाद शृंखला के विशेषज्ञ के रूप में हिंदी पत्रिका 'आजकल' के संपादक डॉ. राकेश रेणु की उपस्थिति ने इस संगोष्ठी में संवाद को सघनता प्रदान की। इस पूरे कार्यक्रम में डॉ. रमा यादव ने भी अपनी महत्वपूर्ण प्रतिभागिता दर्ज़ की और उन्होंने श्रीकान्त वर्मा की अनेक प्रसिद्ध कविताओं का वाचन किया। संप्रति, डॉ. रमा यादव मिरांडा हॉउस कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) में सह-प्राध्यापक तथा श्री राम सेंटर फॉर परफार्मिंग आर्ट्स में विजिटिंग फैकल्टी हैं। 
संगोष्ठी के आरंभ में, आईटी वृत्तिक, सुपरिचित लेखिका और शिक्षिका ऋचा जैन ने श्रीकान्त वर्मा के बारे में संक्षिप्त परिचय दिया तथा संवादकर्ताओं नामत: डॉ. रेखा सेठी और डॉ. राकेश रेणु की साहित्य के क्षेत्र में अर्जित उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। 
 
डॉ. रेखा ने आरंभ में कहा कि यह हमारा सौभाग्य है कि डॉ. राकेश रेणु हमारे बीच उपस्थित हैं। डॉ. रेणु, डॉ. रमा और वह स्वयं, नई कविता के संबंध में विशेष जानकारी रखते हैं। उन्होंने आगे कहा कि श्रीकान्त वर्मा नई कविता के प्रखर कवि माने जाते हैं। वे किसी सप्तक के कवि न होते हुए भी हमारे समय के बहुत महत्वपूर्ण रचनाकार हैं। उन्होंने एक लम्बा समय पत्रकार के रूप में भी व्यतीत किया था तथा वे राज्य सभा के सदस्य रहते हुए राजनीतिक विषयों के टिप्पणीकार भी रहे हैं। उनका अपना पहला काव्य संग्रह 'भटका मेघ' वर्ष १९५७ में प्रकाशित हुआ था।  तदन्तर, वर्ष १९६७ में 'मायादर्पण' और 'दिनारंभ', वर्ष १९७३ में 'जलसाघर' और १९८४ में 'मगध' काव्य संग्रह आए। वे तीन उपन्यास और आठ कहानी-संग्रह के लेखक भी हैं। उन्होंने अपने समय में रहते हुए अपनी कविताओं में इतिहास और मिथिकों को एकजुट किया।
 
तदनन्तर, डॉ. रेखा ने डॉ. रेणु को मंच पर आमंत्रित करते हुए निवेदन किया कि वे श्रीकांत वर्मा के साहित्य में मुखरित प्रमुख स्वर पर प्रकाश डालें। डॉ. रेणु ने बताया कि जब श्रीकान्त वर्मा का पहला काव्य संग्रह आया तब वह समय नई कविता का नया दौर था। किन्तु, वे नई कविता के आगे के कवि थे। यद्यपि उन्होंने अनेक विधाओं में लिखा है तथापि वे स्वयं को एक कवि के रूप में ही पहचाना जाना पसंद करते थे। श्रीकान्त ने अपनी युवावस्था में ही 'तारसप्तक' के संपादक अज्ञेय की आलोचना करते हुए कहा था कि उन्होंने कविता को जड़ से उखाड़ा है तथा उनके साथ हिंदी लेखन एक गलत दिशा में मुड़ गया, जिसकी चरम परिणति अकविता के रूप में हुई। वह दौर १९७० का था। प्रोफ़ेसर रेखा सेठी के साथ डॉ. रेणु ने भी स्वीकार किया कि श्रीकांत की संवेदनाएं शहर के प्रति न होकर कस्बाई और ग्रामीण जीवन के प्रति रही हैं। प्रोफ़ेसर रेखा ने कहा कि श्रीकान्त के लेखन का चरमोत्कर्ष उनके 'मगध' में मिलता है। प्रोफ़ेसर रमा ने 'मगध' कविता से उद्धृत कुछ अंश भी सुनाए (केवल अशोक लौट रहा है/और सब कलिंग का पता पूछ रहे हैं...)। डॉ. रेणु ने बताया कि श्रीकान्त इंदिरा गाँधी के जनोन्मुख योजनाओं से प्रभावित थे और इसलिए वे उनके करीब आए।  इसके अतिरिक्त, साहित्य में वे मुक्तिबोध से प्रभावित हुए जबकि आम जन-जीवन को लेकर वे लोहिया के प्रभाव में आए। लोहिया के बाद समाजवाद में आए बिखराव के चलते वे लोहिया से अलग हो गए। तदनन्तर, डॉ. रमा ने एक कविता 'मेरी माँ' के कुछ अंश (मेरी माँ की डब-डब आँखें/मुझे देखती हैं यूँ/जलती फसलें/कटती शाख...) का पाठ किया। प्रोफ़ेसर रेखा ने कहा कि बाद में जब श्रीकान्त वर्मा का मूल्यांकन हुआ तो उन्हें रघुबीर सहाय और धूमिल के साथ याद किया गया तथा पाठ्यक्रमों में भी तीनों को एक-साथ रखा गया। 
इस प्रकार, संपूर्ण संगोष्ठी दोनों विशेषज्ञों के गहन संवादों से घनीभूत रही और बीच-बीच में वे एक-दूसरे की बातों को जोड़ते हुए संवाद को दिलचस्प बनाते रहे। अंत में, डॉ. रेखा ने कहा कि इस परिचर्चा में श्रीकान्त के कथा-संसार पर चर्चा नहीं हो पाई। अपनी  आलोचना-कृति 'ज़िरह' में वे लगातार अपने समय से और साहित्यिक मुद्दों से जूझते हुए दिखाई देते हैं। प्रोफ़ेसर रेखा ने उनकी कहानी का एक अंश पढ़कर इस चर्चा का पटाक्षेप किया। 
 
इस पूरे कार्यक्रम का समापन सुश्री ऋचा जैन के औपचारिक धन्यवाद-ज्ञापन से हुआ। इस ऑनलाइन संगोष्ठी को ज़ूम और यूट्यब से जुड़े हुए श्रोता-दर्शकों ने बड़ी तन्मयता से देखा-सुना। इस कार्यक्रम से जुड़े विभिन्न देशों के प्रबुद्धजनों  में तोमियो मीजोकामी, ल्यूदमिला खोंखोलोव, अनूप भार्गव, अरुणा अजितसरिया, आशा बर्मन, जवाहर कर्णावत, शुभम राय त्रिपाठी, विशाल गौहर, डॉ. रश्मि वार्ष्णेय, डॉ. मनोज मोक्षेंद्र आदि विशेष उल्लेखनीय हैं।
न्यूज़ सोर्स : Literary Desk