दिनांक ०२ जुलाई, २०२३ : 'वातायन-यूके' के तत्त्वावधान में विगत ढाई वर्षों से निर्बाध चल रही वैश्विक संगोष्ठियों के क्रम में दिनांक ०१-०७-२०२३ को इसकी १५१ वीं संगोष्ठी आयोजित की गई। इसे 'दो देश-दो कहानियां (भाग-१२)' के रूप में आयोजित किया गया तथा इसे कैनेडा की हिंदी रायटर्स गिल्ड और वैश्विक हिंदी परिवार से विशेष सहयोग मिला। दिल्ली विश्वविद्यालय के इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय की प्रोफ़ेसर रेखा सेठी का सहयोग भी उल्लेखनीय है। 

संगोष्ठी का आरंभ करते हुए सुपरिचित लेखक और साहित्यकार, प्रोफ़ेसर राजेश ने सर्वप्रथम सुषम बेदी के बारे में संक्षिप्त परिचय दिया। सुश्री बेदी न्यूयार्क स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय में हिंदी साहित्य और भाषा की प्रोफ़ेसर थीं। अपने समय की वे महत्वपूर्ण शख्सियत थीं तथा उन्होंने मनोवैज्ञानिक और 'आतंरिक' सांस्कृतिक संघर्षों को अपने लेखन का विषय बनाया एवं दक्षिण एशियाई डायस्पोरा में भारतीयों की स्थिति पर खूब लिखा। एक सिद्धहस्त लेखिका के साथ-साथ वे एक अभिनेत्री थीं और अनेक फिल्मों में उन्होंने अभिनय भी किया। 

 

न्यूयार्क यूनिवर्सिटी में क्लिनिकल असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, रजनी भार्गव ने सुषम जी के साथ अपने व्यक्तिगत अनुभवों का जिक्र करते हुए बताया कि वे उनसे पहली बार वर्ष २००७ में न्यूयार्क में विश्व हिंदी सम्मलेन में मिली थीं। दूसरी बार भी उनसे न्यूयार्क में ही मुलाकात हुई थी जहाँ उन्हें उनके लेखिका के व्यक्तित्व के अतिरिक्त, उनकी एक अलग शख्सियत को भी जानने का अवसर मिला जबकि उन्होंने उस रात्रि-काल में  एक रेस्तरां में सबके बीच बैठकर पुरानी हिंदी फिल्मों के कई गाने सुनाए थे तथा नृत्य भी किया था। प्रोफ़ेसर रजनी ने उनके साथ हिंदी कार्यशालाओं और छात्रों की कक्षाओं में अपने अनुभवों का भी साझा किया। तदनन्तर पेशेवर टेलीविजन पत्रकारिता में अनुभव रखने वाली  लेखिका आराधना झा श्रीवास्तव ने सुषम बेदी जी की कहानी 'अजेलिया के रंगीन फूल' के कुछ अंशों की वाच्य प्रस्तुति की। इस कहानी में प्रवासी भारतीयों के मनोभावों को मार्मिक रूप से रूपायित किया गया है। उसके बाद प्रोफ़ेसर गैब्रिएला ने सुषम बेदी जी की कहानियों की कुछ विशेषताओं पर प्रकाश डाला। अगले वक्ता के रूप में अंबेडकर विश्वविद्यालय के हिंदी के विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर सत्यकेतु  सांकृत मंच पर उपस्थित हुए। २९ वर्षों से हिंदी शिक्षण से जुड़े रहे, प्रोफ़ेसर सांकृत का हिंदी साहित्य लेखन, प्रवासी साहित्य, हिंदी आलोचना और शोध आदि के क्षेत्रों में विशेष योगदान रहा है। उन्होंने बताया कि सुषम जी से मेरी मुलाकात उनके उपन्यास 'हवन' के माध्यम से हुई थी जबकि वह अपने शोध-कार्य में व्यस्त थे। वे बनारस में प्रवासी साहित्य से संबंधित एक कार्यक्रम के दौरान सुषम जी से मिले थे। 

सिंगापुर हिंदी संगम की कर्ता-धर्ता, सुपरिचित लेखिका और शिक्षिका डॉ. संध्या सिंह ने बताया कि सुषम जी जैसे साहित्यकारों के कारण ही हिंदी के लिए विश्व का दरवाज़ा खुला क्योंकि भारतीय कहानीकार सिर्फ अपने देश के बारे में ही लिखते हैं। उन्होंने कहा कि सुषम जी की साहित्यिक समझ और उनकी भाषा ने उन्हें बहुत प्रभावित किया है। उन्होंने बूढ़ी स्त्रियों के लिए काफी कहानियां लिखी हैं। सुषम जी के पति डॉ. राहुल बेदी भी मंच पर उपस्थित थे। वे  स्कूल ऑफ़ बिजनेस के प्रबंधन संकाय के अध्यक्ष हैं। वैश्वीकरण, कॉर्पोरेट प्रशासन, सांस्कृतिक विविधता और अंतरराष्ट्रीय व्यापार के विशेषज्ञ, राहुल बेदी ने कहा कि उन्होंने सुषम जी के बारे में यहाँ बहुत-सी ऐसी बातें सुनीं जो उन्हें पता नहीं थीं। उन्होंने सुषम के साथ आरंभिक मुलाकातों के बाबत चर्चा की जिसके बाद दोनों विवाह-सूत्र में बंध गए। उन्होंने कहा कि सुषम रसिक थीं , वे कहानी लिखती थीं और दिल खोलकर बातें करती थीं। उन्होंने अपने पारिवारिक सहयोग से सुषम बेदी के नाम से 'सुषम बेदी मेमोरियल फण्ड' आरंभ किया है। 

संगोष्ठी के अध्यक्ष श्री अनिल शर्मा जोशी ने कहा कि मुझे वर्ष २०२० में सुषम जी से मिलने और उनसे उनकी कविताएं सुनने का संयोग प्राप्त हुआ था। उन्होंने कहा कि मैंने अचला शर्मा जी द्वारा भेंट की गयी एक पुस्तक में सुषम जी की एक कहानी पढ़ी थी जिसमें किसी व्यक्ति की मृत्यु पर सारे कर्मकांड ईसाई पद्धति से किए जाते हैं लेकिन अंत में मृतक की आत्मा की चिरशांति के लिए भागवत गीता का एक श्लोक उच्चरित किया जाता है। श्री जोशी ने बताया कि उस कहानी ने उन्हें भीतर तक झंकझोर दिया है। उन्होंने परोक्ष  रूप से इंगित किया कि प्रवासी साहित्य को समझने के लिए सुषम जी की कहानियां पढ़नी चाहिए। उन्होंने अपनी कहानियों में संबंधों की जटिलता को स्वयं जीया और समझा है। प्रवासी साहित्य को आगे ले जाने और उसे भारत के हिंदी साहित्य से जोड़ने के लिए सुषम जी का साहित्य पढ़ा जाना चाहिए। संगोष्ठी के समापन पर कैनेडा स्थित हिंदी राइटर्स गिल्ड की सह-संस्थापिका और महत्वपूर्ण प्रवासी लेखिका, सुश्री शैलजा सक्सेना ने जूम और यूट्यूब के माध्यम से जुड़े श्रोता-दर्शकों को धन्यवाद ज्ञापित किया। 

 

(प्रेस विज्ञप्ति)

न्यूज़ सोर्स : Literature Desk