लन्दन, १६ जुलाई, २०२३: दिनांक १५ जुलाई २०२३ को वैश्विक मंच 'वातायन-यूके' के तत्वावधान में वातायन-यूके प्रवासी संगोष्ठी-१५२ का आयोजन किया गया। प्रवासी साहित्यकार दिव्या माथुर के संयोजन में इस संगोष्ठी के केंद्र में थीं - डॉ. नंदिता साहू जो लंदन के भारतीय उच्चायोग में एक अधिकारी के रूप में पदस्थ हैं एवं ब्रिटेन में राजभाषा हिंदी और भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में दत्तचित्त हैं। डॉ. नंदिता के संबंध में उल्लेखनीय है कि वह बहु-प्रतिभ व्यक्तित्व हैं और इनका हस्तक्षेप अनुवाद, साहित्य, संगीत और गायन में समान रूप से रहा है। 

                                               

विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभाओं की आभा बिखेर रही शख्सियतों के इस मंच पर, साक्षात्कार की यह ३०वीं कड़ी थी। साक्षात्कार शृंखला की इस कड़ी में डॉ. साहू का साक्षात्कार लेने वाली विदुषी महिला, मीरा मिश्रा-कौशिक ललित कला सलाहकार और क्रॉस आर्ट निर्मात्री हैं; वे अनेक शैक्षिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में प्रतिभागिता करती हैं।

                                                   

उन्होंने डॉ. नंदिता के विभिन्न साहित्यिक और ग़ैर-साहित्यिक अवदानों पर सार्थक प्रश्न पूछे जिनका डॉ. नंदिता ने बड़ी सहजता और आत्मीयता से उत्तर दिया। दोनों के बीच इस संवाद-शृंखला में किसी भी स्थल पर ऐसा नहीं लग रहा था कि संवाद-विनिमय औपचारिक है; बल्कि यह इतना अनौपचारिक लग रहा था कि जैसे सब कुछ एक परिवार में बैठ कर घटित हो रहा हो। 

संगोष्ठी का शुभारंभ वातायन-यूके की कर्ता-धर्ता सुश्री दिव्या माथुर ने अपने सुपरिचित अंदाज में प्रतिभागियों को आमंत्रित किया और प्रबुद्ध श्रोता-दर्शकों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि डॉ. नंदिता का इस मंच पर आना प्रतीक्षित था जो आज साकार हुआ। तदनन्तर, मीरा मिश्रा के आग्रह पर नंदिता ने दो वर्षों पहले विरचित वसंत पर एक प्रेमपगी कविता का वाचन किया। फिर, उन्होंने अपनी किशोरावस्था के अनुभवों का भी  साझा किया जबकि वह सभी पंथों के पूजा-गृहों का सामान रूप से आदर किया करती थीं। उन्होंने बताया कि गायन का पाठ उन्होंने अपने माता-पिता से सीखा है। उन्होंने बताया कि जिस केंद्रीय विद्यालय की छात्रा थीं, वहीं से उनमें हिंदी में सृजन का बीजारोपण हुआ। अपनी बुआ के कहने पर उन्होंने हिंदी एम.ए. में दाखिला लिया।विद्यार्थी-जीवन में छोटी-छोटी कविताएं लिखीं जो कॉलेज की पत्रिकाओं में प्रकाशित होती थीं  जिन्हें वे  स्थानीय मंचों पर सुनाया भी करती थीं। उनका विधिवत लेखन उनके विवाह के पंद्रह वर्षों बाद आरंभ हुआ। नृत्यांगना गुरु, साधना ताई के आग्रह पर उन्होंने अपना पहला नाटक 'पंचदेह' लिखा। उन्होंने बताया कि वे शिवानी से प्रभावित रही हैं और निराला, प्रसाद और महादेवी वर्मा के प्रति भी आकर्षित रही हैं। उन्होंने कविवर निराला की कविताओं की कुछ पंक्तियों का वाचन भी किया। तदनन्तर, उन्होंने मीरा मिश्रा-कौशिक के अनुरोध पर अपने परिवार का समीचीन परिचय दिया। उसके बाद, सुश्री दिव्या माथुर के आत्मीय आग्रह पर उन्होंने 'सफलता की ओर' शीर्षक से अपनी एक स्वरचित कविता सुनाई। कुछ श्रोताओं नामत: निखिल कौशिक और सौभाग्य कोरले ने कुछ सवाल भी पूछे जिन पर डॉ. नंदिता की प्रतिक्रिया सटीक थी।  

                                  

संगोष्ठी का समापन डॉ. मनोज मोक्षेंद्र के धन्यवाद-ज्ञापन से हुआ। उन्होंने कहा कि प्रबुद्ध श्रोताजन डॉ. नंदिता के जीवन के अनछुए पक्षों और व्यापकअनुभव-क्षेत्र के बारे में  जानकर अचंभित हुए हैं। उन्होंने कामना की कि उनकी रचनाधर्मिता और अधिक पल्लवित-पुष्पित हो। उन्होंने मीरा मिश्रा-कौशिक जी द्वारा डॉ. नंदिता के सृजन-पक्ष और उनके जीवन के अनछुए अनुभवों पर बेबाकी से पूछे गए अंतरंग सवालों की तारीफ की और दोनों विदुषी महिलाओं को वातायन परिवार की तरफ से हार्दिक धन्यवाद प्रेषित किया। उन्होंने तकनीकी सहयोगकर्ता शिवि श्रीवास्तव का भी आभार प्रकट किया और ऐसी संगोष्ठियों की सफलता का श्रेय श्रोता-दर्शकों देते हुए उनके प्रति भी कृतज्ञता ज्ञापित की; उनके द्वारा चैट बॉक्स में की गई टिप्पणियों को बेहद उत्साहवर्धक बताया।

                                        

 

(प्रेस विज्ञप्ति) 

 

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