लन्दन : दिनांक  १४ मई, २०२२ को "वातायन मंच" के तत्वावधान में 'वातायन यूके' और 'हिंदी राइटर्स गिल्ड कैनेडा' के संयुक्त प्रयास से  "दो देश दो कहानियां (भाग-४)" का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के प्रस्तोता आशीष मिश्र ने संगोष्ठी के आरम्भ में प्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ. हरीश नवल को  मंच पर प्रस्तुत की जाने वाली कहानियों के समीक्षक तथा मंच के अध्यक्ष के रूप में परिचय कराया।

तदनन्तर, श्री मिश्र ने टोरंटो (कैनेडा) की कथाकार डॉ. हंसा दीप तथा ब्रिटेन की कथाकार शिखा वार्ष्णेय की साहित्यिक पृष्ठभूमि के बारे में बताया। उसके पश्चात् उन्होंने कहानी-पाठ के लिए सर्वप्रथम शिखा वार्ष्णेय को मंच पर आमंत्रित किया। 

शिखा की कहानी "झंझट ख़त्म" अत्यंत संवेदनशील और हृदयस्पर्शी थी जिसे उन्होंने अपने वाचन को एकालाप की संज्ञा दी। इसमें उन्होंने मृत्यु पर शामिल होने वाले लोगों की मन:स्थिति का बखूबी जायज़ा लिया। अपनी ही मृत्यु पर होने वाले अंत्येष्टि-कार्यक्रम की तैयारी स्वयं करना कितना विडम्बनामय लगता है। इसके अतिरिक्त, पश्चिमवासियों का भारत आकर किसी की अंत्येष्टि में शामिल होने के लिए जिस तरह की तैयारियां उनके द्वारा की जाती हैं, उनका मार्मिक चित्रण भी मन को भीतर तक द्रवित कर जाता है। अंत्येष्टि क्रियाकर्म पर जिस औपचारिकता-प्रदर्शन तथा संवेदनाशून्य व्यवहार का चित्रण इस कहानी के कथानक बुनावट में मिलता है, वह आज की  हृदयविहीन मानसिकता को बिम्बित करता है। 

शिखा के कहानी-पाठ के बाद आशीष मिश्र ने हंसा दीप को मंच पर कहानी पाठ के लिए आमंत्रित किया। उनकी कहानी "अधजले छुट्टे" में वैश्विक कुत्सित मानसिकता जैसेकि रंगभेद की अमानवीय परंपरा पर तीक्ष्ण तंज कसा गया है। कहानी का वाचक एक स्त्री-पात्र है जो हमेशा डरी-सहमी रहती है तथा जो अपने अकेलेपन में किसी के भी प्रवेश से परहेज़ करती है।  चुनांचे, उसे घर में कुछ काम करने के लिए जिस नीग्रो जैसे काले-कुरूप आदमी को बुलाना पड़ता है तथा जिसे देखकर वह स्वयं अचंभित होकर सहम जाती है, वह आते ही उससे कहता है कि डोंट लुक ऐट मी, लुक ऐट माय वर्क। अर्थात कथाकार उसके शारीरिक प्रगटीकरण पर से ध्यान हटाकर, उसके भीतर के ईमानदार और कर्मठ इंसान को, यानी भीतर के अमूर्त मनुष्य को मूर्त रूप में अवतरित करने के लिए कथानक का ताना-बाना बुनती है। गोरे लोगों की काले लोगों के प्रति घृणा को सार्वजनिक करने वाली यह कहानी ह्रदय-द्रावक  साबित होती है। कथाकार ने इस कहानी के प्रत्येक पक्ष पर समुचित ध्यान दिया है और कहानी की भूमिका और इतिश्री को बड़े मनोयोग से संवारा है। 

तत्पश्चात, समीक्षक हरीश नवल ने दोनों कहानियों के सभी पक्षों का प्रच्छालन करते हुए, उन्हें कहानी-कला की कसौटियों पर अत्यंत सूक्ष्मता से कसने का प्रशंसनीय प्रयास किया। हंसा दीप की कहानी  को उन्होंने स्त्री-विमर्श और दलित विमर्श के लिए चर्चा के केंद्र में रखने का आग्रह किया जबकि  शिखा की कहानी में व्याप्त व्यंग्यात्मक शैली को रेखांकित किया। 

कहानी का समापन करते हुए आशीष मिश्र ने "वातायन मंच" के सूत्रधारों में से महत्वपूर्ण सूत्रधार पद्मेश गुप्त को धन्यवाद-ज्ञापन के लिए  आमंत्रित किया। पद्मेश ने दोनों कथाकारों के कथा-वाचन की प्रशंसा करते हुए उन्हें साधुवाद  प्रेषित किया जबकि मंच के अध्यक्ष हरीश नवल की आलोचना-समालोचना दक्षता को तहे दिल से सराहा और उन्हें इसके लिए धन्यवाद दिया। पद्मेश गुप्त ने ज़ूम और यूट्यूब माध्यमों से जुड़े हुए श्रोता-दर्शकों को भी धन्यवाद ज्ञापित किया। 

 

(PRESS RELEASE)

न्यूज़ सोर्स : WEWITNESS LITERARY DESK