दिनांक : ०४ जून, २०२२ को प्रख्यात साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर के संयोजन में लन्दन स्थिति "वातायन मंच" के तत्वावधान में 'हिंदी राइटर्स गिल्ड' तथा 'वैश्विक हिंदी परिवार' के सहयोग से 'दो देश दो कहानियां (भाग -५) से संबंधित १०७ वीं संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी में ब्रिटेन के महेंद्र दवेसर तथा दुबई की आरती लोकेश को अपनी-अपनी कहानियों के पाठ के लिए मंच पर स्वागत किया गया जबकि उन कहानियों पर वरिष्ठ लेखक और संपादक डॉ. हरीश नवल ने समीक्षाएं प्रस्तुत कीं। 

सर्वप्रथम कार्यक्रम की प्रस्तोता आस्था देव ने दोनों कहानीकारों का परिचय कराया तथा डॉ. हरीश नवल को संगोष्ठी की अध्यक्षता करने के लिए आमंत्रित किया।  तदुपरांत,  आस्था देव ने उद्घोषक और नाट्यकर्मी कृष्ण टंडन जी को महेंद्र दवेसर की कहानी को वीडियो के माध्यम से सुनाने का आग्रह किया। इस कहानी में कथाकार ने मन के भीतर उठ रही सुनामी को प्रतीकात्मक रूप में प्रतिबिंबित किया है। कहानी मानवीय संवेदनाओं से लबरेज़ थी जिसे रूपकात्मक शैली में प्रस्तुत किया गया। यह कहानी मानवीय संवेदनाओं के अनेकानेक बिंदुओं को रेखांकित करती है। समीक्षक ने कहा कि यह कहानी हतप्रभ करने वाली है जिसमें शेफाली मित्रा और उसकी सखी सुंदरी के मन में भीतर उफान ले रही सुनामी को भौगोलिक सुनामी की भांति ही उद्वेलित करने वाली सुनामी के रूप में चित्रित किया गया। उन्होंने कहा कि यह कहानी  इतिहास की भांति हमें यथार्थ का आभास करा रही थी, न कि कल्पना-लोक में विचरण करा रही थी। इसके अतिरिक्त, यह कहानी मज़हब की तोड़ने और जोड़ने वाली मानसिकता पर भी प्रकाश डालती है। हरीश नवल ने इतनी अच्छी कहानी के लिए कथाकार को साधुवाद प्रेषित किया। 

इस संगोष्ठी के अंतर्गत दूसरी कहानी "मोह का ताना-बाना" का सस्वर पाठ किया--दुबई की कथाकार आरती लोकेश ने। यह कहानी घरेलू और सामाजिक स्त्री  के हर पक्ष पर ध्यान केंद्रित करती है। विवाहार्थ लड़की के विवाह-बंधन में बंधने की चाह और विवाहोपरांत गृहस्थी के लफड़ो-झटकों की व्यस्तता में अपनी अस्मिता पहचानने की इच्छा इस कहानी का तानाबाना बुनती है। कहानी स्त्री मनोविज्ञान को पूर्णता में रेखांकित करती है। मित्रता, मोह, मातृत्व, पड़ोस, सखी-धर्म, रिश्ता,  अबोध बच्ची की युवती बनकर दुल्हन बनने तक की यात्रा आदि जैसे रोचक विवरणों से यह कहानी भरी पड़ी है। समीक्षक ने कहा कि यह हमारे आसपास की कहानी है जो प्रत्येक घर की कहानी हो सकती है।  कहानी छोटी-छोटी स्त्री-सुलभ क्रियाओं से बुनी जाती है और एक बड़े फलक पर स्त्री के संसार को चित्रांकित करती है। समीक्षक ने कहा कि कहानी में नाटकीयता दिलचस्प रूप लेती है।

संगोष्ठी के समापन पर वातायन परिवार की संरक्षिका सुश्री दिव्या माथुर ने उपस्थित प्रबुद्ध श्रोताओं से टिप्पणियों के लिए आमंत्रित किया और उनकी विशिष्ट बातों को रेखांकित किया। तदनन्तर, आस्था देव ने दोनों कहानीकारों, समीक्षकों तथा श्रोता-दर्शकों को धन्यवाद ज्ञापित किया। 

(प्रेस विज्ञप्ति)

 

(मनोज मोक्षेंद्र)   

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