विश्व में हिंदी भाषा और हिंदी साहित्य तथा भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में लंदन स्थित ‘वातायन-यूके’ एक ऐसी अग्रणी संस्था है जिसकी भूमिका को हिंदी साहित्य के इतिहास में सदैव अभिलिखित किया जाएगा. यह संस्था आवधिक रूप से हिंदी भाषा, साहित्य और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में जो संगोष्ठियां आयोजित करती है अथवा करती रही है, उनमें न केवल भारतीयों की सहभगिता को महत्व दिया जाता है, अपितु विश्व के विभिन्न देशों अर्थात ब्रिटेन, अमरीका, कैनेडा, चीन, जापान, सिंगापुर, श्रीलंका आदि देशों के प्रतिनिधि शख़्सियतों को भी प्रमुखता से शामिल किया जाता है.

ऐसे महत्वपूर्ण आयोजनों के अतिरिक्त, वातायन-यूके कुछ अति महत्वपूर्ण गतिविधियां भी निष्पादित करता है; जैसेकि  वार्षिक आधार पर वातायन सम्मान-समारोह का आयोजन. अस्तु, विगत में आयोजित वातायन सम्मान-समारोहों की तुलना में अक्तूबर 2023 में आयोजित सम्मान-समारोह नि:संदेह हटकर था; अर्थात, अत्यंत विशिष्ट, वृहत, घटना-प्रधान और महत्वपूर्ण था तथा इसकी तुलना हिंदी से संबंधित किसी भी वैश्विक आयोजन से की जा सकती है. इस समारोह को इंद्रधनुषीय स्वरूप प्रदान करने के लिए वातायन-यूके की प्रबंधन समिति के पदाधिकारियों और सदस्यों द्वारा व्यापक रूप से रूपरेखा और कार्यनीति तैयार की गई तथा वैश्विक आधार पर इसके आयोजन हेतु समन्वयन-सहयोजन भी किया गया. हिंदी के स्वर्णिम भविष्य को लेकर सपनों को साकार रूप में देखने के लिए सामूहिक श्रमदान किया गया जिसका स्वयंसेवी आधार रहा है.  

संरक्षक बैरोनेस फैदर के सान्निध्य में तथा संस्थापक सदस्यों नामत: सत्येंद्र श्रीवास्तव, अनिल शर्मा जोशी, डॉ. पद्मेश गुप्त एवं मोहन राणा के विगत में अथक प्रयासों से प्रतिफलित तथा दिव्या माथुर द्वारा संस्थापित-प्रबंधित यह वैश्विक ‘हिंदी महोत्सव-2023’ आज भारत की साहित्यिक गलियारों में गरमागरम चर्चाओं से सराबोर है.

इस साहित्यिक, अकादमिक और सांस्कृतिक समारोह अर्थात ‘भारोपीय हिंदी महोत्सव’ को  त्रिदिवसीय इवेंट्स में खूबसूरती से समेटा गया. इसका शुभारंभ 13 अक्तूबर 2023 को हुआ और समापन 15 अक्तूबर 2023 को. प्रख्यात प्रवासी साहित्यकार दिव्या माथुर द्वारा वर्ष 2004 में स्थापित साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘वातायन-यूके’ के तत्वावधान में, इस महोत्सव के विविधधर्मी कार्यक्रम लंदन के ऑक्सफोर्ड बिज़नेस कॉलेज, ब्रेंटफोर्ड तथा डॉ. सत्येंद्र श्रीवास्तव कक्ष और डॉ. गौतम सचदेव कक्ष जैसे स्थानों पर हुआ. उल्लेखनीय है कि इस संस्थान द्वारा आहूत हिंदी महायज्ञ में स्वयंसेवी भावना से विश्व की अनेकानेक संस्थाओं ने भी अपने-अपने योगदान दिए. इन संस्थानों में ऑक्सफोर्ड बिजनेस कॉलेज़, वैश्विक हिंदी परिवार, यूके हिंदी समिति, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, 'काव्यधारा' और 'काव्यरंग' का उल्लेखनीय  योगदान रहा है.

इस अंतरराष्ट्रीय आयोजन में विश्व के 14 देशों के 90 नामचीन साहित्यकारों की पूर्णकालिक उपस्थिति रही. लंदन समेत अन्य देशों के प्रवासी साहित्यिकों ने इसे सफलता के सर्वोच्च सोपान तक ले जाने के लिए एडी-चोटी का प्रयास किया. सहयोगकर्ताओं ने जिस ऊर्जस्विता और संकल्प के साथ इस महोत्सव के प्रत्येक इवेंट में अपनी प्रत्यक्ष-परोक्ष प्रतिभागिता की, उसकी जितनी भी सराहना की जाए, वह कम ही होगी.

‘वातायन-यूके’ की संस्थापक-प्रबंधक दिव्या माथुर इस महोत्सव को बीज-शब्द ‘नए क्षितिज, नए आयाम’ से अभिमंत्रित करते हुए अपनी उस आश्वस्ति को पुख्ता बनाया जो हिंदी के वैश्वीकरण के लिए आवश्यक है. यह समारोह इस तथ्य को संपुष्ट बनाता है कि आगामी कुछ ही दशकों में समूचा विश्व हिंदी भाषा और साहित्य के जरिए एक जीवंत सांस्कृतिक उद्बोधन से अभिसिंचित होगा और भारत की साहित्यिक-सांस्कृतिक चेतना सार्वत्रिक आधार पर सकारात्मक प्रेरणा का स्रोत बनेगी. यह कहना भी अतिरंजित न होगा कि जहाँ तक हिंदी भाषा का संबंध है, इसके लिए यह समय अत्यंत संक्रमणशील दौर के रूप में रेखांकित किया जा रहा है क्योंकि हिंदी साहित्य के व्यापीकरण में प्रवासी साहित्यकारों की सृजनशीलता बड़े जोर-शोर से अपनी दख़ल दर्ज़ कर रही है जो हिंदी के भविष्य के लिए एक अच्छा शकुन है.

उद्घाटन समारोह:-

महोत्सव के त्रिदिवसीय कार्यक्रमों के अंतर्गत, पहले दिन का कार्यक्रम दिनांक 13 अक्तूबर 2023 को लंदन के समयानुसार सायं 5 बजे से आरंभ होकर देर रात तक चलता रहा. इस  दिन, समारोह का विधिवत उद्घाटन ब्रिटिश उच्चायोग में कार्यरत अधिकारी डॉ. नंदिता साहू की सरस्वती-वंदना तथा ‘वातायन-यूके’ की अध्यक्ष और सुपरिचित साहित्यकार मीरा कौशिक की अतिथियों की अगुवाई और स्वागत-भाषण से हुआ.  

सुप्रसिद्ध हिंदी प्रचारक और प्रख्यात साहित्यकार तथा वैश्विक हिंदी परिवार के मानद अध्यक्ष अनिल शर्मा जोशी ने अपने सुपरिचित अंदाज़ में बीज वक्तव्य देते हुए कहा कि यह सम्मेलन अन्य सभी हिंदी सम्मेलनों से अलग है. उन्होंने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि  यह हिंदी सम्मेलन भारत-ब्रिटेन के मध्य प्राचीन सहयोग-सहभागिता को रेखांकित करता है. उन्होंने विदेशों में हिंदी की अलख जगाने वाले साहित्यकारों सत्येंद्र श्रीवास्तव, गौतम सचदेव, लक्ष्मीशंकर सिंघवी के योगदानों की चर्चा की. उन्होंने बताया कि ‘वातायन-यूके’ विदेशों में हिंदी को प्रचारित-प्रसारित करने वाली एक अग्रणी संस्था है. इस अवसर पर, राकेश पांडेय और डॉ. संतोष चौबे की एक-एक पुस्तकों का लोकार्पण भी किया गया. प्रख्यात साहित्यकार डॉ. संतोष चौबे, सुविख्यात कवयित्री प्रोफे. अनामिका, अनिल शर्मा जोशी,  के अतिरिक्त आलोक मेहता, डॉ. सच्चिदानंद जोशी, अरुण माहेश्वरी डॉ. अल्पना मिश्र, नीलिमा डालमिया आधार, डॉ. एम.एन. नंदाकुमारा, जकिया ज़ुबेरी, संजीव पालीवाल, मेयर अफज़ाल कियानी, अपरा कुच्छल, एल. पी. पंत और प्रत्यक्षा सिन्हा मंचासीन थे। उद्घाटन समारोह में पूरे समय ब्रिटिश सांसद वीरेंद्र शर्मा भी उपस्थित रहे. जाने-माने साहित्यकार और हिंदी के प्रचार-प्रसार में दत्त्तचित्त डॉ. पद्मेश गुप्त और लंदन की युवा कवयित्री आस्था देव के संचालन में, डॉ. संतोष चौबे को ‘अंतरराष्ट्रीय वातायन शिखर सम्मान’, प्रोफे. अनामिका को ‘वातायन अंतरराष्ट्रीय साहित्य सम्मान’, प्रोफेसर हाइंस वरनर वेस्लर और प्रोफे. रेखा सेठी दोनों को ‘वातायन अंतरराष्ट्रीय शिक्षा सम्मान’ से अलंकृत किया गया.

श्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने अपने संबोधन में कहा कि दुनिया की सर्वाधिक बोली जाने वाली हिंदी हमारी संस्कृति का प्राण है और हमारा वसुधैव कुटुम्बकम पर अमल करने वाला देश चांद पर जा चुका है. हमारी  नई शिक्षा नीति हमारी भाषा हिंदी का विकास करते हुए जीवन-मूल्यों को स्थापित करेगी. इसके विकास में प्रधानमंत्री मोदी जी का भी बडा योगदान है जो विदेशों में भी हिंदी में ही भाषण देते हैं.

डॉ. संतोष चौबे, प्रोफे. अनामिका, प्रोफेसर हाइंस वरनर वेस्लर और प्रोफे. रेखा सेठी ने अपने-अपने प्रखर ज्ञान, अनुभव और हिंदी प्रेम का परिचय देते हुए जो वक्तव्य दिए, वे हिंदी साहित्य में सदैव रेखांकित किए जाएंगे. उनके वक्तव्य साहित्यिक बिंदुओं के अतिरिक्त शिक्षण और अनुवाद विषयों पर केंद्रित थे. सुप्रसिद्ध प्रवासी कथाकार तेजेंद्र शर्मा ने अपने वक्तव्य में सभी सम्मानितों का अभिनंदन किया और अंतरीपा ठाकुर मुखर्जी तथा अरुण माहेश्वरी ने भी अवसरानुकूल अपने-अपने उद्गार प्रकट किए.  

अकादमिक सत्र:-

महोत्सव का दूसरा दिन अपने विविधतापूर्ण अकादमिक सत्रों के कारण विशेष उल्लेखनीय रहा. इनमें कुल आठ सत्रों का सुविध निष्पादन किया गया, जो इस प्रकार हैं:

  1. सांस्कृतिक और व्यावसायिक क्षेत्रों में अनुवाद,
  2. हिंदी शिक्षण : चुनौतियां और संभावनाएं,
  3. प्रवासी लेखन : परिचर्चा,
  4. वैश्वीकरण और हिंदी भाषा,
  5. यूरोप में हिंदी शिक्षण (यूके हिंदी समिति की प्रस्तुति),
  6. साहित्य और सिनेमा,
  7. भारतीय भाषाओं की एकात्मकता और
  8. हिंदी भाषा और साहित्य: भविष्य की रूपरेखा.

 

इन अकादमिक सत्रों की अध्यक्षता डॉ. सच्चिदानन्द जोशी, डॉ. रमेश पोखरियाल, डॉ. सत्यकेतु सांकृत, श्री अशोक मेहता, डॉ. हाइंस वरनर वेसलर, श्री संजीव पालीवाल और डॉ. राजेश नेथानी ने की जबकि मुख्य अतिथि के आसन पर डॉ. रमा पांडे, प्रोफे. निरंजन कुमार, श्री अनिल शर्मा जोशी, श्री एल.पी. पंत, डॉ. स्नेहलता शर्मा, श्री रवि शर्मा, डॉ. एम. ऐ. नंदा कुमारा और डॉ. अल्पना मिश्र ने की. वक्ताओं में प्रोफे. पूनम कुमारी, डॉ. शिव कुमार सिंह, डॉ. अभय कुमार, डॉ. इला कुमार, डॉ. यूरी बोत्वींकिन, मारिया पुरी, ऋचा जैन, प्रोफे. राजेश कुमार, डॉ. संध्या सिंह, डॉ. सर्वेंद्र विक्रम, डॉ. कुसुम नैपसिक, पूजा अनिल, शिवानी भारद्वाज, डॉ. मोनिका ब्रोवाचिक, डॉ. येवगेनी रुतोव, डॉ. ज्योति शर्मा, अर्चना पेन्यूली, शैल अग्रवाल, इला प्रसाद, कादंबरी मेहत्रा, जय वर्मा, डॉ. वंदना मुकेश, प्रोफे. हाइंस वरनर वेसलर, डॉ. जयशंकर यादव, डॉ. तातियाना ओरांसकिया, डॉ. शैलजा सक्सेना, डॉ. पद्मेश गुप्त, अंजना उप्पल, जमैल गिब्सन, प्रिया लेखा, सुरभि वाडगामा, विभा शर्मा, प्रोफे. ऐश्वर्ज कुमार और शिखा वार्ष्णेय, डॉ. रेखा सेठी, डॉ. निखिल कौशिक, डो. अनुपमा श्रीवास्तव, डॉ. गोकुल क्षीरसागर, प्रगति टिप्पणीस, तिथि दानी, प्रोफे. बलीराम थापसे, प्रोफे. प्रतिभा मुदलिया, डॉ. गायत्री मिश्रा, डॉ. वाणीश्री बुग्गी, डॉ. रामसुधा विंजमुरी, डॉ. संतोष चौबे, प्रोफे. अनामिका, प्रत्यक्षा सिन्हा और मनीषा कुलश्रेष्ठ जैसे मुर्धन्य विद्वान-साहित्यकार थे. इनअकादमिक सत्रों का संचालन-समन्वयन किया—ऋचा जैन, राजेश कुमार, डॉ. ज्योति शर्मा, डॉ. वंदना मुकेश, मधुरेश मिश्रा, डॉ. जवाहर कर्णावत, शिखा वार्ष्णेय, तिथि दानी, डॉ. रागसुधा विंजमुरी,अंतरीपा ठाकुर मुखर्जी और डॉ. संध्या सिंह ने.   

काव्य संध्या:-

महोत्सव के दूसरे दिन सायंकाल, ‘काव्य संध्या’ का रंगारंग आयोजन किया गया. काव्य पाठ में, जहाँ प्रौढ कवियों की रचनाएं भाव-पक्ष और कला-पक्ष की दृष्टियों से परिपक्व और गांभीर्य से ओतप्रोत थीं, वहीं युवाओं और नवांकुरों की कविताएं ऊर्जा और उर्वरता से  परिपूर्ण थीं. वरिष्ठ कवि-वृन्द में डॉ. संतोष चौबे, प्रोफे. अनामिका, अनिल शर्मा जोशी, डॉ. निखिल कौशिक, डॉ. पद्मेश गुप्त, डॉ. रमा पाण्डे, उषा राजे सक्सेना, डॉ. अजय त्रिपाठी, मधुरेश मिश्रा जैसे कवियों की रचनाओं में सम-सामयिक प्रेरक विषयों का संपुट था जबकि युवा कवियों की कविताओं में ओज के साथ-साथ सृजनशीलता की छटपटाहट का अनुभव किया गया. अन्य कवियों में मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराने वाले रचनाकारों में शैल अग्रवाल, शिखा वार्ष्णेय, ज्ञान शर्मा, जय वर्मा, शेफाली फ्रास्ट, तिथि दानी, ऋचा जैन, अंतरीपा ठाकुर मुखर्जी, आस्था देव, आशुतोष कुमार, मधु चौरसिया आदि थे. इस मंच पर गीत और ग़ज़ल के अतिरिक्त, छंदमुक्त और छांदिक अनुशासनों से आबद्ध सरस और प्रेरणाप्रद रचनाएं सुनने को मिली. इस काव्य-संध्या मंच का हृदयग्राही सफल संचालन किया, ब्रिटेन के ही युवा रचनाकार आशीष मिश्र ने.

कलमोत्सव:-

महोत्सव का तीसरा दिन समापन दिवस था. किंतु, यह दिन भी विविध प्रकार के इवेंट्स से सज्जित और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से ध्वनित था. इसे दो चरणों में विभक्त किया गया था. प्रथम चरण ‘कलम-ओ-उत्सव को समर्पित था जिसके निदेशक क्रमश: अपरा कुच्छल, नीलिमा डालमिया आधार और डॉ. पद्मेश गुप्त थे. उत्सव के वक्ता थे—अनिल शर्मा जोशी, अल्पना मिश्र, प्रोफे. अनामिका, एल.पी.पंत, मनीषा कुलश्रेष्ठ, प्रत्यक्षा, राजेश कुमार, डॉ. रेखा सेठी, प्रोफे. सच्चिदानंद जोशी और संजीव पालीवाल. उत्सव के प्रतिभागियों में आस्था देव, पियाली रे, ऋचा जैन, ऋतु प्रकाश छाबडिया, शिखा वार्ष्णेय, तिथि दानी और तितिक्षा शाह शामिल थे. यूके समिति के सौजन्य से डोना गांगुली और उनका टृप ने सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुतियों से सभी को मोहित कर दिया. प्रसिद्ध नृत्यांगना डोना के नृत्य ने ढेरों प्रशंसा बटोरी.

कलमोत्सव के अंतर्गत निम्नलिखित विषयों पर प्रतिभागियों ने संवाद किया/चर्चा की:-

  1. बेहतर कहानी की भूमि: अपनी भाषा अपने लोग,
  2. हिंदी साहित्य और स्त्री-विमर्श,
  3. मीडिया की चुनौतियां और संभावनाएं,
  4. पर्वत, पात्र और परिकल्पना,
  5. भाषा और संस्कृति-बोध
  6. इतिहास रचते शब्द,
  7. बदलती लहरें नारीवाद का विकसित परिदृश्य,
  8. सत्य और कल्पना के पन्ने,
  9. नमक स्वादानुसार और
  10. कविता, कूटनीति और स्त्री कथाएं.

समापन समारोह:-

भारोपीय हिंदी महोत्सव के तीसरे दिन के (लंदन के समयानुसार), मध्यान्ह-पश्चात का कार्यक्रम पिछले दो दिनों की गतिविधियों का सिंहावलोकन था; यह इस आयोजन की उपलब्धियों, उद्देश्यों और सकारात्मक निष्कर्षों को रेखांकित करता है. यह इंगित करता है कि जो वैविध्यपूर्ण कार्यकलाप निष्पादित किए गए, वे ऐसे आयोजन पर कोई पूर्ण विराम नहीं लगाकर हिंदी के चतुर्मुखी विस्तार-विकास के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित करते हैं; दिशा-देश के अवरोधों को लांघते हुए, मंथन-चिंतन-समन्वयन-सहयोजन के आधार पर हमें एक सक्रिय अभियान के लिए उत्तरोत्तर आगे बढने की प्ररणा देते हैं.

‘वातायन-यूके’ के स्वयंसेवी सदस्य-कार्यकर्ताओं के अन्तर्मन में यही संकल्प उन्हें आद्योपांत झिंझोड-झकझोर रहा था कि बस, किसी देश की भाषा और उसका साहित्य ही वह औजार है जिससे उस देश की संस्कृति को सुघड बनाकर निखारा जा सकता है. वातायन-यूके ने ऐसा करने में सफलता के उच्चतर सोपान पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराई है. वह बधाई का पात्र है.

महोत्सव के समापन समारोह में, तीनों दिन अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान करने वाले समस्त साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों और प्रतिभागियों ने अपने-अपने उद्गार व्यक्त किए. इस विशेष अवसर पर लब्ध-प्रतिष्ठ भाषाविद और साहित्यकार श्री अतुल कोठारी ऑनलाइन जुडते हुए मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे. समारोह पर आदि से अंत तक नज़र रखते हुए डॉ. संतोष चौबे ने समापन-समारोह की अध्यक्षता की. ख्यात कथाकार अर्चना पैन्यूली विशिष्ट अतिथि के रूप में मुखातिब हुईं. अनिल शर्मा जोशी ने समापन वक्तव्य दिया और डॉ. पद्मेश गुप्त ने सम्मेलन से संबंधित प्रस्ताव प्रस्तुत किए.

मंच-संचालिका डॉ. संध्या सिंह ने प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि यह महोत्सव वह पडाव है जो हमें अगले पडाव तक ले जाएगा. उन्होंने कहा कि ‘वातायन’ ने एक नई शुरुआत करते हुए स्थानीय  हिंदी के लेखकों, अध्यापकों, भाषा-मित्रों और स्वयंसेवकों का अभिनंदन किया है और उन्हें एक संकल्प से वचनबद्ध किया कि वे हिंदी भाषा के उत्थान में इसी दत्तचित्तता से अपना महती योगदान देते रहेंगे. इस प्रकार, उपर्युक्त भूमिकाओं में विदेशों में हिंदी के प्रचार-प्रसार में अपना बहुमूल्य योगदान देने वाले डॉ. निखिल कौशिक, डॉ. नरेश शर्मा, शैल अग्रवाल, उषा राजे सक्सेना, डॉ. वंदना मुकेश, कादंबरी मेहरा, सितला शर्मा, नीरजा शर्मा, सन्मुख बख्शी, जय वर्मा, डॉ. अरुणा अजितसरिया, डॉ. रागसुधा विजमुरी, कृष्ण बजगाईं, अंतरीपा ठाकुर मुखर्जी, तितिक्षा शाह, आस्था देव, शिवि श्रीवास्तव और आशीष मिश्रा के प्रति सम्मान प्रकट करते हुए उन्हें शाल ओढाया गया. ‘वातायन-यूके’ की संस्थापिका दिव्या माथुर ने इस औपचारिकता को अंतर्भूत विनय-भाव से संस्कारित किया जो किसी भी प्रकार से सम्मान-अलंकरण से कमतर नहीं था. इसी बीच, काव्य संध्या में अपनी प्रस्तुति न कर पाने वाली शेफाली फ्रॉस्ट ने अपनी एक प्रतिनिधि कविता का हृदयस्पर्शी वाचन किया.

तदनंतर, डॉ. पद्मेश गुप्त ने सम्मेलन संबंधी प्रस्तावों पर प्रकाश डालते हुए कुछ चुटीली काव्यमय पंक्तियां उद्धृत कीं. उन्होंने निम्नलिखित तीन प्रस्ताव रखे जिन पर उपस्थितों ने सर्वसम्मति से अपनी सहमति दी:-

  1. इस महोत्सव में शिक्षण, अनुवाद, भाषा, प्रवासी लेखन, मीडिया आदि विषयों पर जो विविधधर्मी प्रस्तुतियां की गईं, उनके संबंध में एक पाठ्यक्रम तैयार कराया जाए तथा इसे डॉ, संतोष चौबे के प्रयासों से भारत सरकार द्वारा स्वीकृत कराया जाए;
  2. इस दौर के युवा रचनाकारों की रचनाओं का चयन किया जाए तथा उन्हें वाणी प्रकाशन के सौजन्य से प्रकाशित कराया जाए; तथा
  3. वैश्विक हिंदी परिवार के तत्वावधान में प्रत्येक दो वर्ष पर एक ऐसा ही महोत्सव कराया जाए. इस संबंध में, डॉ. संध्या सिंह ने कहा कि वे सिंगापुर में एक ऐसा ही महोत्सव कराएंगी.

सम्मेलन में एक अंतरराष्ट्रीय संस्था के गठन पर भी बल दिया गया. तत्पश्चात, अर्चना पैन्यूली ने मंच पर अपने अभिभाषण में महोत्सव की सफलता पर बधाई देते हुए कहा कि इस कार्यक्रम में हिंदी भाषा से संबद्ध कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान केंद्रित कराया गया है. भारतेतर विद्वान सलमान ने कहा कि इस महोत्सव में कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करने वाले जो लोग हमारे सामने हैं, उनके प्रति हम कृतज्ञ तो हैं ही; किंतु, जो  लोग परदे के पीछे सक्रिय रहते हैं, उनके प्रति भी हमें कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए. अपने उद्बोधन-उवाच से हमें कृतकृत्य करने वालों में अनिल शर्मा जोशी का नाम प्रमुखता से लिया जाना चाहिए. उन्होंने इस समारोह को सफलता के उच्चतम सोपान पर ले जाने वाले देश-विदेश से आए प्रबुद्ध प्रतिभागियों के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहा कि हिंदी के एक दिव्य और पवित्र शब्द ‘नमस्ते’ का निहिताशय असीम-अपरिमेय है. उन्होंने कहा कि सिर्फ सम्मेलन का आयोजन उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना कि उस सम्मेलन के बाद हमारी अनुवर्ती कार्रवाई और उसके समापन के पश्चात हमारी सक्रियता. उन्होंने हिंदी के प्रचार-प्रसार में इसके ऑनलाइन प्रशिक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि जैसाकि डॉ. सच्चिदानंद ने प्रस्ताव किया है कि जो विद्यार्थी हिंदी प्रशिक्षण के इच्छुक हैं, उन्हें बुलाकर हफ्ते-महीने भर के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि हिंदी की अनेकानेक समस्याओं को दूर करने के लिए  प्रौद्योगिकी पर हमारा ख़ास जोर होना चाहिए. उन्होंने वाणी प्रकाशन द्वारा युवा रचनाकारों की रचनाएं प्रकाशित किए जाने के प्रस्ताव का स्वागत किया. समारोह के अध्यक्ष अतुल कोठारी ने भी अपने रचनात्मक सुझावों से सभा को अभिसिंचित किया तथा हिंदी के स्वयंसेवकों को इस दिशा में अग्रेतर सक्रिय होने के लिए अभिप्रेरित किया.

समारोह के अवसान पर तितिक्षा शाह का धन्यवाद-ज्ञापन हृदयस्पर्शी और भावुकता स्नात करने वाला था. उन्होंने न केवल वहाँ उपस्थितों को अपने आभार-प्रदर्शन से भाव-विह्वल किया अपितु दूरस्थ देशों के उन व्यक्तियों के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करके उन्हें अचम्भित कर दिया, जो किसी-न-किसी भूमिका में इस महोत्सव से संबद्ध थे.

न्यूज़ सोर्स : Literature Desk