लन्दन, 15 अक्तूबर २०२३ : विश्व की अग्रणी हिंदी संस्था के रूप में लोकप्रिय ‘वातायन-यूके’ के तत्वावधान में, दिनांक: 14 अक्तूबर, 2023 (शनिवार) को लंदन स्थित डॉ. सत्येंद्र श्रीवास्तव सभागार तथा डॉ. गौतम सचदेव सभाकक्ष में ‘भारोपीय हिंदी महोत्सव’ के दूसरे दिन का भव्य आयोजन किया गया।  इस कार्यक्रम में  ऑक्सफोर्ड बिजनेस कॉलेज़, वैश्विक हिंदी परिवार, यूके हिंदी समिति, हिंदी राइटर्स गिल्ड कैनेडा, सिंगापुर साहित्य संगम, इंद्रप्रस्थ कॉलेज़ (दिल्ली विश्वविद्यालय), अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, 'काव्यधारा' और 'काव्यरंग' का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष योगदान रहा है.

इस महोत्सव के दूसरे दिन के कार्यक्रम के प्रथम चरण को आठ सत्रों में विभाजित किया गया था, जिन्हें कुल मिलाकर अकादमिक स्वरूप प्रदान किया गया था. दूसरा चरण काव्य संध्या को समर्पित था. लंदन के समयानुसार सायं 4 बजकर 15 मिनट से शुरू हुए अकादमिक सत्र में आठ विषयों पर अपने-अपने विचार और अभिमत व्यक्त करने के लिए हिंदी भाषा और साहित्य के उद्भट विद्वानों तथा साहित्यकर्मियों की गरिमामयी उपस्थिति रही. 

प्रथम सत्र-1क का विषय था—'सांस्कृतिक और व्यावसायिक क्षेत्रों में अनुवाद’ जिसके अध्यक्ष और मुख्य अतिथि थे क्रमश: डॉ. सच्चिदानंद जोशी और डॉ. रमा पांडे. इस सत्र में प्रतिभागी वक्ता थे—प्रोफे. पूनम कुमारी, डॉ. शिव कुमार सिंह, डॉ. अभय कुमार, डॉ. इला कुमार, डॉ. यूरी बोत्वींकिन, मारिया पुरी, ऋचा जैन और प्रोफे. राजेश कुमार. सत्र 1ख के मंच के अध्यक्ष थे डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’,  तथा मुख्य अतिथि थे- प्रोफे. निरंजन कुमार. सान्निध्य मिला प्रोफे. संतोष चौबे का. वक्ताओं में थे—डॉ. संध्या सिंह, डॉ. सर्वेंद्र विक्रम, डॉ. कुसुम नैपसिक, पूजा अनिल, शिवानी भारद्वाज, डॉ. मोनिका ब्रोवाचिक, डॉ. येवगेनी रुतोव तथा डॉ. ज्योति शर्मा. इस सत्र का विषय था-हिंदी शिक्षण: चुनौतियां और संभावनाएं.

सत्र-2क का विषय था—प्रवासी लेखन: परिचर्चा. इसके अध्यक्ष और मुख्य अतिथि थे क्रमश: डॉ. सत्यकेतु सांकृत और अनिल शर्मा जोशी. सान्निध्य मिला—डॉ. राकेश पांडे का. इस सत्र के वक्ता-वृन्द में थे—अर्चना पेन्यूली, शैल अग्रवाल, इला प्रसाद, कादंबरी मेहत्रा, जय वर्मा और डॉ. वंदना मुकेश. सत्र-2ख का वक्तृत्व-बिंदु था वैश्वीकरण और हिंदी भाषा; आलोक मेहता की अध्यक्षता तथा एल. पी. पंत के मुख्य आतिथ्य में वक्ता थे—प्रोफे. हाइंस वरनर वेसलर, डॉ. जयशंकर यादव, डॉ. तातियाना ओरांसकिया और डॉ. शैलजा सक्सेना. जवाहर कर्णावत के संचालन में समंवयक थे मधुरेश मिश्रा.

सत्र-3क के मंच का विषय था—यूरोप में हिंदी शिक्षण: यूके हिंदी समिति की प्रस्तुति. इस विचार-मंच की अध्यक्षता की प्रोफे. हाइंस वरनर वेस्लर ने जबकि मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. स्नेहलता शर्मा मंच पर आसीन थीं. डॉ. पद्मेश गुप्त, अंजना उप्पल, जमैल गिब्सन, प्रिया लेखा, सुरभि वाडगामा, विभा शर्मा, प्रोफे. ऐश्वर्ज कुमार और शिखा वार्ष्णेय ने इस महती विषय पर अपने-अपने अभिमत दिए.

सत्र-3ख ‘साहित्य और सिनेमा’ विषय पर केंद्रित था जिसकी अध्यक्षता की संजीव पालीवाल ने और मुख्य अतिथि थे रवि शर्मा. मीरा मिश्रा कौशिक का सान्निध्य मिला. वक्ता थे—डॉ. रेखा सेठी, डॉ. निखिल कौशिक, डो. अनुपमा श्रीवास्तव, डॉ. गोकुल क्षीरसागर, प्रगति टिप्पणीस तथा तिथि दानी.

 

4-क सत्र में ‘भारतीय भाषाओं की एकात्मकता’ विषय पर वक्तव्य देने के लिए प्रोफे. बलीराम थापसे, प्रोफे. प्रतिभा मुदलिया, डॉ. गायत्री मिश्रा, डॉ. वाणीश्री बुग्गी, डॉ. रामसुधा विंजमुरी जैसे मूर्धन्य विचारक मंच पर उपस्थित थे. इस मंच के अध्यक्ष थे—डॉ. राजेश नैथानी जबकि मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. एम.ऐ. नंदकुमारा मंच पर आसीन थे. हमें सान्निध्य प्राप्त हुआ हिंदी भाषा के विशेष जानकार डॉ. रियाज़ौल अंसारी का.

इस सत्र के विद्वान-वक्ताओं के मंतव्य-अभिमत सकारात्मकता और ऊर्जस्विता से सराबोर थे. उनके अनुसार, हिंदी भाषा का साहचर्य भारत की भाषाओं और बोलियों के साथ सदियों से रहा है. इस परिप्रेक्ष्य में, हिंदी एक मां की भूमिका में दृष्टगत होती है. विद्वानों का विचार था कि हिंदी में भारतीय संस्कृति की भांति समन्वयात्मक क्षमता है तथा इस नज़रिए से न केवल हिंदी समृद्ध हो रही है बल्कि भारत की सभी प्रांतीय और क्षेत्रीय भाषाओं का भी चतुर्मुखी विकास हो रहा है. भाषाओं के स्वरूप में भले ही परिवर्तन दिखाई दे रहा है; पर, उनकी मौलिकता और पहचान पर कोई आंच नहीं आने वाली है. विद्वानों का मशविरा था कि इस संक्रमण-काल में भाषाओं के बीच पारस्परिक समन्वयन के लिए लोगों को उदारवादी दृष्टिकोण अपनाना होगा.

प्रथम चरण का द्वितीय सत्र हिंदी भाषा और साहित्य के संबंध में विचार-विमर्श को समर्पित था. ‘हिंदी भाषा और साहित्य: भविष्य की रूपरेखा’ जैसे महत्वपूर्ण विषय पर प्रबुद्ध वक्ता-वृन्द की एक शृंखला मंच पर विराजमान थी. डॉ. सच्चिदानंद जोशी की अध्यक्षता और डॉ. अल्पना मिश्र के मुख्य आतिथ्य में हमें अरुण माहेश्वरी का सान्निध्य मिला. इस विषय पर डॉ. रेखा सेठी, डॉ. संतोष चौबे, प्रोफे. अनामिका, प्रत्यक्षा सिन्हा और मनीषा कुलश्रेष्ठ ने अपने-अपने वक्तव्य दिए जबकि डॉ. संध्या सिंह के संचालन में इस पूरे कार्यक्रम की समंवयक थीं—अंतरीपा ठाकुर मुखर्जी.

इस विषय पर, प्रबुद्ध वक्ताओं ने साहित्यकारों की पिछली पीढियों तथा वर्तमान एवं भावी पीढियों की रचनाधर्मिता, सृजनशीलता, साहित्यिक रुझान तथा समाज के लिए उनके रचनाकर्म की उपादेयता पर वृहत चर्चा हुई. डॉ. रेखा सेठी और प्रोफे. अनामिका के विचार भावी रचनाकारों और नवाकुरों के लिए अपेक्षाकृत अधिक अनुकरणीय और उपादेय रहे. साहित्य पर तुलनात्मक विश्लेषण किया गया. अन्य विद्वानों के हिंदी भाषा के संबंध में विचार भी रचनात्मक रहे.

कार्यक्रम के द्वितीय चरण में काव्य संध्या का रंगारंग आयोजन किया गया. यह काव्य मंच प्रौढ, युवा और नवांकुर पीढियों के रचनाकारों से मुखर होता प्रतीत हुआ. जहाँ प्रौढ कवियों की रचनाएं भाव-पक्ष और कला-पक्ष की दृष्टियों से परिपक्व और गांभीर्य से ओतप्रोत थीं, वहीं युवाओं और नवांकुरों की कविताएं ऊर्जा और उर्वरता से  परिपूर्ण थीं. कविताओं का वाचन सुनकर ऐसा लगा कि जैसे हम काव्य प्रवाह में बहते हुए आत्ममंथन करने के लिए विवश हो रहे हों. वरिष्ठ कवि-वृन्द में डॉ. संतोष चौबे, प्रोफे. अनामिका, अनिल शर्मा जोशी, डॉ. निखिल कौशिक, डॉ. पद्मेश गुप्त, डॉ. रमा पाण्डे, उषा राजे सक्सेना, डॉ. अजय त्रिपाठी, मधुरेश मिश्रा जैसे कवियों की रचनाओं में सम-सामयिक प्रेरक विषयों का संपुट था जबकि युवा कवियों की कविताओं में ओज के साथ-साथ सृजनशीलता की छटपटाहट का अनुभव किया गया. उनकी कविताओं में अंतर्विष्ट भाव, शिल्प और नवोन्मेष की आहटों के स्वर साफ सुनाई दिए. अन्य कवियों में मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराने वाले रचनाकारों में शैल अग्रवाल, शिखा वार्ष्णेय, ज्ञान शर्मा, जय वर्मा, शेफाली फ्रास्ट, तिथि दानी, ऋचा जैन, अंतरीपा ठाकुर मुखर्जी, आस्था देव, आशुतोष कुमार, मधु चौरसिया आदि थे. इस मंच पर गीत और ग़ज़ल के अतिरिक्त, छंदमुक्त और छांदिक अनुशासनों से आबद्ध सरस और प्रेरणाप्रद रचनाएं सुनने को मिली.

इस काव्य-संध्या मंच का सुविध और सफल संचालन किया, ब्रिटेन के ही युवा रचनाकार आशीष मिश्र ने. कार्यक्रम का समापन वरिष्ठ साहित्यकारों द्वारा युवा कवियों को दिए गए आशीर्वचनों से हुआ. काव्य संध्या के अवसान पर संचालक आशीष मिश्र ने वरिष्ठ कवियों के प्रति ‘वातायन-यूके’ की टीम की ओर से आभार प्रकट किया तथा सभी प्रतिभागी कवियों और ऑनलाइन जुडे श्रोता-दर्शकों को धन्यवाद ज्ञापित किया.    

 

न्यूज़ सोर्स : Literature Desk