लखनऊ । समाजवादी पार्टी (सपा) जाति के मुद्दे को छोड़ने के मूड में नहीं है। उसका मानना है कि इसी तरह सत्ता में वापसी का मार्ग प्रशस्त होगा। सपा उत्तर प्रदेश में जातिगत जनगणना की मांग को लेकर 24 फरवरी को राज्यव्यापी ब्लॉक स्तरीय अभियान शुरू करेगी। पहला चरण 5 मार्च को समाप्त होगा। अभियान 20 फरवरी से शुरू होने वाले यूपी विधानमंडल के बजट सत्र के साथ मेल खाता है।
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ऐलान किया है कि पार्टी इस मुद्दे को विधानसभा में भी उठाएगी। सपा को लगता है कि वह 85 बनाम 15 (85 प्रतिशत ओबीसी और दलित हैं और 15 प्रतिशत उच्च जातियां हैं) को बढ़ावा देकर भाजपा के 80 बनाम 20 (80 हिंदू, 20 मुस्लिम) के सांप्रदायिक कार्ड का मुकाबला कर सकती है। 
अपनी नई नीति को रेखांकित करते हुए सपा अध्यक्ष ने हाल ही में अपने दो नेताओं रोली मिश्रा और ऋचा सिंह को निष्कासित कर दिया है, जिन्होंने सपा एमएलसी स्वामी प्रसाद मौर्य के श्रीरामचरितमानस पर दिए बयान पर आपत्ति जताई थी। निष्कासित दोनों नेता सवर्ण जाति के हैं। हालांकि अखिलेश यादव ने पार्टी नेताओं को संकेत दिया है कि उन्हें सांप्रदायिक और धार्मिक मुद्दों से बचना चाहिए, लेकिन उन्हें पिछड़े और दलित जाति समूहों से संबंधित मुद्दों को उठाने में हिचकने की जरूरत नहीं है। यूपी विधानमंडल में समाजवादी पार्टी के 109 विधायक और नौ एमएलसी हैं और बजट सत्र में सपा का फोकस जातिगत जनगणना, कानून व्यवस्था, महिलाओं के खिलाफ अपराध, बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों पर रहेगा।