मध्य प्रदेश के सागर जिले में विंध्य चट्टानों के कटाव में देहार नदी बहती है. नदी के किनारे चट्टानों के बीचों बीच गुफा में प्रसिद्ध गौरी शंकर मंदिर है, जहां भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती अर्धनारीश्वर के रूप में विराजमान है. शिवरात्रि के पर्व पर यहां पर हजारों लोग पूजा-अर्चना करने पहुंचते हैं. मान्यता है कि गौरी शंकर मंदिर में सच्चे मन से पूजा करने पर घर में सुख समृद्धि आती है और हर मनोकामना पूर्ण होती है. प्रसिद्ध रानगिर माता मंदिर से करीब 1 किलोमीटर की दूरी पर यह मंदिर है. इस मंदिर तक पहुंचाने के लिए सीढ़ी की व्यवस्था की गई है. साथ ही गुफा वाले इस मंदिर का भव्य रूप से निर्माण शुरू किया गया है.

करीब 35 साल पहले हुई थी मंदिर की स्थापना
नागा बाबा हंसमुख श्रीजी महाराज बताते हैं कि उज्जैन के जूना अखाड़े से जुड़े उनके गुरु ने पत्थरों में गुफा देखकर भगवान भोलेनाथ की स्थापना की थी. इसके बाद यहीं रहकर तपस्या करने लगे. कुछ साल पहले वह समाधि में लीन हो गए. इसके बाद हंसमुख महाराज भगवान भोलेनाथ की सेवा कर रहे हैं. यहां पर अर्धनारीश्वर और गणेश स्वरूप में भोलेनाथ विराजमान है. महाशिवरात्रि के दिन रुद्राभिषेक और तीन बार आरती होगी. भजन के कार्यक्रम, भंडारा और प्रसादी वितरण होगा. इसके साथ ही शिव-पार्वती विवाह की रस्में भी निभाई जाएगी जिसमें हल्दी तेल वरमाला जैसे कार्यक्रम होंगे.

गुफा में तीन तरह के भोलेनाथ
हंसमुख महाराज बताते हैं कि गुफा में तीन अलग-अलग तरह के भगवान भोलेनाथ विराजमान हैं और तीनों ही शिवलिंग का अपना महत्व है. अर्धनारीश्वर भगवान के दर्शन करने से व्यक्ति संत बनता है. यहां गणेश स्वरूप में भी भोलेनाथ हैं, उनके दर्शन करने से भक्तों की कामना पूरी होती है. शिव रूप में विराजे भगवान भोलेनाथ की सेवा करने से हनुमान जी जैसे भक्त बनते हैं. उन्होंने बताया कि यहां आने वाले हर भक्त को अंजुरी से जल दिया जाता है. अंजुरी में जो तुलसी के पत्ते होते हैं अगर वह किसी के हाथ में चले जाएं तो समझ लो कि उसे आशीर्वाद मिल गया और भोलेनाथ की कृपा बरसेगी.