सनातन धर्म में कई परंपराएं सदियों से चली आ रही हैं, जिनका पालन आज तक किया जाता है. इन्हीं परंपराओं में से एक है कुल देवी देवता की पूजा करना. भारतीय लोग हजारों वर्षों से अपने कुल देवी और देवता की पूजा करते आ रहे हैं. कुल देवी और देवता को पूजने के पीछे एक गहरा रहस्य है, जो बहुत कम लोग जानते होंगे. आइए जानते हैं भोपाल निवासी ज्योतिष आचार्य विनोद सोनी पौद्दार से कि सभी के कुलदेवी-देवता अलग क्यों होते हैं और उन्हें पूजना क्यों जरूरी होता है? साथ ही जानेंगे कुल देवी या देवता की पूजा नहीं करने से क्या हो सकता है.

कब-कब होती है कुल देवी-देवता की पूजा?
जन्म, विवाह आदि मांगलिक कार्यों में कुल देवी या देवताओं के स्थान पर जाकर उनकी पूजा की जाती है या उनके नाम से स्तुति की जाती है.

इसके अतिरिक्त एक ऐसा भी दिन होता है जबकि संबंधित कुल के लोग अपने देवी और देवता के स्थान पर इकट्ठा होते हैं.

सभी के कुल देवी और कुल देवता अलग-अलग क्यों होते हैं?

ज्योतिष आचार्य विनोद सोनी पौद्दार के अनुसार कुल अलग हैं, तो स्वाभाविक है कि कुल देवी-देवता भी अलग-अलग ही होंगे.

हजारों वर्षों से अपने कुल को संगठित करने और उसके अतीत को संरक्षित करने के लिए ही कुल देवी और देवताओं को एक स्थान पर स्थापित किया जाता था. वह स्थान उस वंश या कुल के लोगों का मूल स्थान होता था.

जैसे आपके परदादा के परदादा ने किसी समय में कहीं से किसी भी कारणवश पलायन करके जब किसी और स्थान पर परिवार बसाया होगा तो निश्चित ही उन्होंने वहां पर एक छोटा सा मंदिर या मंदिर जैसा स्थान बनाया होगा, जहां पर आपके कुलदेवी और देवता को स्थान दिया होगा. प्राचीनकाल में यह होता था कि मंदिर से जुड़े व्यक्ति के पास एक बड़ी-सी पोथी होती थी जिसमें वह उन लोगों के नाम, पते और गोत्र अंकित करता था.

यह कार्य वैसा ही था, जैसा कि गंगा किनारे बैठा तीर्थ पुरोहित या पंडे आपके कुल और गोत्र का नाम अंकित करते हैं. आपको अपने परदादा के परदादा का नाम नहीं मालूम होगा लेकिन उन तीर्थ पुरोहित के पास आपके पूर्वजों के नाम लिखे होते हैं.

इससे आप अपने वंशवृक्ष से जुड़े रहते हैं. अब फिर से समझें कि प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी देवी, देवता या ऋषि के वंशज से संबंधित है. उसके गोत्र से यह पता चलता है कि वह किस वंश से संबधित है.

इसके अलावा किसी कुल के पूर्वजों ने, कुल के वरिष्ठों ने अपने लिए उपयुक्त कुल देवता या कुल देवी का चुनाव कर उन्हें पूजना आरम्भ कर दिया और उसके लिए एक निश्चित स्थान पर एक मंदिर बनवाया जिससे एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति से उनका कुल जुड़ा रहे और वहां से उसकी रक्षा होती रहे.

कुल देवी या देवता कुल या वंश के रक्षक देवी-देवता होते हैं. ये घर-परिवार या वंश-परंपरा के प्रथम पूज्य और मूल अधिकारी देव होते हैं. इसलिए इन्हें प्रत्येक कार्य में याद करना आवश्यक होता है. इनका प्रभाव इतना महत्वपूर्ण होता है कि यदि ये रुष्ट हो जाएं तो हनुमान जी के अलावा अन्य कोई देवी या देवता इनके दुष्प्रभाव या हानि को कम नहीं कर सकता या रोक नहीं लगा सकता.

कुल देवता नाराज हो जाएं तो क्या होता है
ऐसा भी देखने में आया है कि कुल देवी-देवता की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता, लेकिन जब देवताओं का सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में घटनाओं और दुर्घटनाओं का योग शुरू हो जाता है. सफलता रुकने लगती है, गृह कलह, उपद्रव और अशांति शुरू हो जाती हैं और वंश आगे सुचारू रूप से नहीं चल पाता.