दिल्ली, 11 नवंबर 2023: ‘अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद’ तथा ‘वातायन-यूके’ के तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार द्वारा नई दिल्ली के प्रवासी भवन में दिनांक 10 नवंबर, 2023 को सायंकाल, एक उच्च-स्तरीय विचार-संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इस संगोष्ठी को दिनांक 13 अक्तूबर से 15 अक्तूबर , 2023 तक लंदन में आयोजित ‘भारोपीय हिंदी महोत्सव’ की एक शृँखला के रूप में रेखांकित किया जाना होगा क्योंकि इसका विषय ही था—“भारोपीय हिंदी महोत्सव-लंदन : उपलब्धियाँ और दिशाएँ”. इस संगोष्ठी को दो भागों में विभक्त किया गया; प्रथम भाग में लंदन महोत्सव की उपलब्धियों का आकलन करना था जबकि द्वितीय भाग में ‘वातायन-यूके’ के उन कर्मठ सदस्यों को अभिनंदित करते हुए सम्मानित करना था जिन्होंने लंदन के महोत्सव में अपना योगदान भारत में रहते हुए किया.

इस संगोष्ठी के आयोजक थे—अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के गोपाल अरोडा और वैश्विक हिंदी परिवार के राजेश चेतन जबकि संयोजक थे- जितेंद्र कुमार. संगोष्ठी की अध्यक्षता की अमरीका, इज़रायल, वेस्टइंडीज़, साउथ अफ्रीका, त्रिनीदाद आदि देशों में राजदूत और कूटनीतिज्ञ रह चुके श्री वीरेंद्र गुप्ता ने. संप्रति श्री गुप्ता अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के अध्यक्ष भी हैं. संगोष्ठी के स्वागताध्यक्ष श्री श्याम परांडे थे जो अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के महासचिव हैं. इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे डॉ. सच्चिदानंद जोशी जी, जो इंदिरा गाँधी सांस्कृतिक एवं कला केंद्र के अध्यक्ष भी हैं. महोत्सव की उपलब्धियों और तदनंतर विदेशों में हिंदी शिक्षण पर प्रकाश डालते हुए टैगोर विश्वविद्यालय, भोपाल के वाइस चॉन्सलर एवं अनेक विश्वविद्यालयों के चॉन्सलर, श्री संतोष चौबे ने हिंदी शिक्षण के विभिन्न बिंदुओं पर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि हिंदी और हिंदीतर पुस्तकों के अनुवाद तथा कथेतर गद्य लेखन से हिंदीतर छात्रों में हिंदी को बेहतर ढंग से प्रचारित-प्रसारित किया जाए. उन्होंने लंदन महोत्सव में प्रस्तावित सौ पुस्तकों के अनुवाद की भी चर्चा की तथा इस महती कार्य में तत्परता लाने पर विशेष बल दिया. उन्होने हिंदी शिक्षण हेतु प्रस्तावित संस्थाओं और हिंदी उत्सवों के लिए अपना यथेष्ट योगदान करने के संकल्प को दोहराया जिसका सभी उपस्थित विद्वानों ने करतल ध्वनि से स्वागत किया. श्री चौबे ने इस कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति ऑनलाइन के जरिए दर्ज़ की.

संगोष्ठी की विशिष्ट अतिथि प्रोफे. अनामिका ने लंदन महोत्सव की यादों को ताज़ा करते हुए इसे विशिष्ट हिंदी आयोजन के रूप में रेखांकित किया और भविष्य में ऐसे अनेक कार्यक्रमों के आयोजित किए जाने की अपेक्षा की. उनका वक्तव्य सारगर्भित और ऊर्जस्व था. इस संगोष्ठी को अपने गरिमामय सान्निध्य से स्फूर्त बनाते हुए इंद्रप्रस्थ महाविद्यालय की प्रोफेसर रेखा सेठी ने महोत्सव को हिंदी से संबंधित विश्व हिंदी सम्मेलनों जैसे प्रमुख आयोजनों के समकक्ष बताया. उन्होंने दो वर्षों बाद सिंगापुर में आयोज्य हिंदी महोत्सव का भी उल्लेख किया. ज़ूम के माध्यम से अपनी ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज़ करती हुई डॉ. मृदुल कीर्ति ने अपने वक्तव्य में विभिन्न भाषाओं की पुस्तकों के हिंदी और प्रादेशिक भाषाओं में अनुवाद पर बल दिया और कहा कि उन्होंने स्वयं कोई सत्रह-अट्ठारह प्राचीन ग्रंथों का अनुवाद किया है तथा वे लंदन महोत्सव में प्रस्तावित अनुवाद-कार्य को अग्रेतर ले जाने में अपनी पूरी ऊर्जा का प्रयोग करेंगी. विशिष्ट अतिथियों के रूप में डॉ. निरंजन कुमार और डॉ. सत्यकेतु सांकृत और डॉ. मृदुल कीर्ति  के नाम इस संगोष्ठी के लिए विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं. अधिकतर वक्ताओं ने हिंदीतर क्षेत्रों के विद्यार्थियों के लिए हिंदी शिक्षण हेतु प्रौद्योगिकी के समुचित प्रयोग के विकास और शिक्षण-कार्य में इसके अनुकूलन को आवश्यक बतलाया. यह भी कहा गया कि युवाओं की रचनाओं के वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किए जाने की दिशा में तत्परता लाने की आवश्यकता है. श्री संतोष चौबे और डॉ. सच्चिदानंद जोशी समेत सभी प्रबुद्ध वक्ताओं ने हिंदी भाषा और भारत की प्रादेशिक भाषाओं, उप-भाषाओं और बोलियों के पारस्परिक संबंधों की चर्चा करते हुए यह स्वीकार किया कि हिंदी उनके विकास का मार्ग प्रशस्त कर रही है.

भारोपीय हिंदी महोत्सव के निदेशक रहे और ऑक्सफोर्ड बिज़नेस कॉलेज़ के सेवारत प्रोफेसर, डॉ. पद्मेश गुप्त ने लंदन से ऑनलाइन जुडते हुए श्री संतोष चौबे और डॉ. सच्चिदानंद जोशी के पूरे महोत्सव-काल में उपस्थित रहने पर आभार प्रकट किया. उन्होंने वहाँ पारित प्रस्तावों के क्रियान्वयन में उनके द्वारा नि:स्वार्थ सेवा किए जाने की इच्छा का स्वागत करते हुए कहा कि इससे हिंदी के वैश्वीकरण का रास्ता बहुत आसान हो जाएगा. उन्होंने वैश्विक हिंदी परिवार, सिंगापुर साहित्य संगम, वाणी फाउंडेशन/प्रकाशन केंद्र, दिल्ली विश्वविद्यालय के इंद्रप्रस्थ महिला कॉलेज़ और ऑक्सफोर्ड बिज़नेस कॉलेज़ द्वारा लंदन महोत्सव में किए गए योगदानों को भी रेखांकित किया. तदनंतर, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के डॉ. नारायण कुमार ने अपने संक्षिप्त वक्तव्य में लंदन महोत्सव की सफलता को हिंदी के लिए एक उपलब्धि बताया. उन्होंने कहा कि ऐसी पूरी उम्मीद है कि हिंदी का यह विकास-अभियान सतत आगे चलता रहेगा.

इस प्रकार, संगोष्ठी के प्रबुद्ध प्रतिभागियों के वक्तव्यों का लब्बोलुबाब यह था कि प्रवासी हिंदी लेखन समूचे हिंदी साहित्य और हिंदी भाषा की दशा-दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर रहा है. इस संबंध में, श्री अनिल शर्मा जोशी ने अपने सुपरिचित अंदाज़ में ‘वातायन-यूके’ की भूमिका की भूरि-भूरि सराहना की. उन्होंने ऐसी संस्थाओं का हिंदी के विकासार्थ प्रतिबद्धता को गरमजोशी से रेखांकित किया तथा ‘वातायन-यूके’ की प्रबंधक-संयोजक सुश्री दिव्या माथुर की भूमिका को मील का पत्थर बताया. उन्होंने लंदन महोत्सव के स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं की नि:स्वार्थ सेवाओं को भी रेखांकित किया तथा उनका हियतल से प्रशस्तिगान किया. उल्लेख्य है कि दिनांक 10 अक्तूबर 2023 को लंदन से लौटे श्री जोशी सीधे इस कार्यक्रम में उपस्थित हुए थे जो हिंदी की सेवा के प्रति उनकी अटूट वचनबद्धता को प्रदर्शित करता है.

अपने अध्यक्षीय भाषण में राजदूत श्री वीरेंद्र गुप्ता ने हिंदी के विकास में आने वाली अडचनों की ओर सभी का ध्यान आकर्षित किया. उन्होंने उन हिंदीभाषियों को आडे हाथों लिया जो अपने व्यावहारिक जीवन में बोलचाल के लिए अंग्रेज़ी का प्रयोग करते हैं और हिंदी के हिमायती होने का दम भरते हैं.

जिन वातायन सदस्यों के विशेषतया लंदन महोत्सव के लिए किए गए योगदानों की प्रशंसा की गई, उनमें प्रोफे. पवन कुमारिया, डॉ. मधु चतुर्वेदी, डॉ. पूनम सिंह, सरोज शर्मा, डॉ. मनोज मोक्षेंद्र, कृष्णा कुमार और शुभम राय त्रिपाठी के नाम उल्लेखनीय हैं. कार्यक्रम के समापन पर

इस पूरे कार्यक्रम का सुविध और कुशल संचालन किया—डॉ. राजेश कुमार ने, जिन्होंने बीच-बीच में अपनी टिप्पणियों से मंच को जीवंत बनाए रखा. कार्यक्रम का समापन करते हुए डॉ. राजेश ने उपस्थित सभी विद्वतजनों तथा ऑनलाइन सहभागिता कर रहे व्यक्तियों के प्रति आभार प्रकट किया.

न्यूज़ सोर्स : Wewitness Lit. Desk